किसान इसकी खेती पारंपरिक विधि से करते है, जिससे उन्हें औसत पैदावार ही मिलती है
सर्दियों के मौसम के साथ देश में रबी फसलों की बुआई का सीजन शुरू हो चुका है। अधिकांश राज्यों के किसानों ने रबी फसलों की बुआई शुरू कर दी है, तो कई जगह किसान तैयारी करते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों की सलाह से फसलों की खेती की जाए, तो खेती में लगने वाली लागत को काफी हद तक कम किया जा सकता है और फसल की उत्पादकता को भी बढ़ाया जा सकता है।
रबी सीजन की फसलों में मुख्य फसल गेहूं, सरसों, जौ, चना समेत सब्जियों की बुआई किसानों द्वारा की जाती है। इसी कड़ी में हम किसान भाईयों के लिए सब्जी और दहलन फसल मटर की खेती की जानकारी लेकर आए हैं।
देश के कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, पंजाब, असम, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, बिहार और उड़ीसा राज्य में मटर की अगेती और पिछेती किस्मों की खेती किसानों द्वारा प्रमुखता से की जाती है। लेकिन किसान इसकी खेती पारंपरिक विधि से करते है, जिससे उन्हें औसत पैदावार ही मिलती है। अगर मटर की खेती किसान वैज्ञानिक विधि से करें, तो उन्हें कम लागत में खेती से अच्छी पैदावार प्राप्त हो सकती है। इस पोस्ट में हम किसानों को मटर की वैज्ञानिक खेती कैसे करें के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।
मटर की खेती किस प्रकार की भूमि में करें?
किसानों को मटर की खेती से ज्यादा पैदावार लेने के लिए हमेशा रेतीली दोमट मिट्टी वाली भूमि का ही चयन करना चाहिए । मिट्टी उत्तम जल निकासी के साथ उपजाऊ होनी चाहिए। भूमि का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए। अगर आप इसकी खेती दलहनी फसल के उद्देश्य से करते हैं, तो खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करके रखनी चाहिए। वैसे मटर की खेती के लिए भुरभुरी दोमट, चिकनी और रेतीली दोमट मिट्टी को सबसे उत्तम बताया गया है।
फसल को रोग और कीटों से बचाने के लिए क्या करें?
कृषि विश्वविद्यालयों के मुताबिक मटर की फसल को प्रारंभिक मृदाजनित एवं बीज जनित रोगों से बचाने के लिए जैव कवकनाशी ट्राईकोडर्मा विरडी 1 फीसदी ङ्ख.क्क. या ट्राईकोडर्मा हारजिएनम 2 फीसदी ङ्ख.क्क. की 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 60-75 किलोग्राम पुरानी गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 10 से 15 दिनों तक छाया में रखें। बीजों की बुआई के पहले खेत की आखिरी जुताई के समय मिट्टी में मिला देने चाहिए।