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10/84 महादेव : श्री कर्कोटकेश्वर महदेव मंदिर

कर्कोटकेश्वर दशमं विद्धि पार्वति।
यस्य दर्शनपात्रेण विपैर्नेवामिभूयते।।

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लेखक – रमेश दीक्षित

शिवलिंग वर्णन- यह महादेव मंदिर मां हरसिद्धि शक्तिपीठ परिसर के वायव्य कोण(पश्चिमोत्तर) में स्थित है। इसके स्वयंभू 9 इंच ऊंचे शिवलिंग की यह विशेषता है कि यह नौ नागों से अविष्टित है। गर्भगृह की दीवारें दर्शाती है कि यह मंदिर अति प्राचीन है। इसकी दीवारों के आले में गणेश, पार्वती, मंशा माता व मां भैरवी की मूर्तियां है।

यहां काल सर्प यंत्र का पूजन किया जाता है। मंदिर के पूर्णाभिमुख प्रवेश द्वार में प्रवेश करते ही बाई ओर तांबे की शीट पर दस कण व ग्यारह कणों के 2 नाग बने हुए हैं तथा तीनों दीवारों पर कुल ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण 12 नाग जड़े हुए हैं। इनमें मुख्यत: कर्कोटक, शेषनाग, अनन्तनाग, कालियानाग आदि हैं। सभामण्डप में सफेद संगमरमर के बड़े आकार के नंदी की मूर्ति है।

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शिवलिंग का महत्व-

महादेवजी ने पार्वती से कहा कि कर्कोटकेश्वर शिवलिंग के दर्शन मात्र से विषदोष का नाश होता है। एक बार अवज्ञा करने पर सर्पमाता ने शाप दिया कि वे सर्प जन्मोजय के यज्ञ में जल जावेंगे। भय से कुछ सर्प हिमालय व अन्य सर्व यमुना जल में चल गये। जब वे ब्रह्मा के पास पहुंचे व रक्षा की प्रार्थना की तो उन्होंने कहा कि महाकालवन में जाकर महेश्वर की आराधना करो। तब सभी नागगण ने वहां महादेव की आराधाना की।

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भगवान ने प्रसन्न होकर कहा कि केवल क्रूर, पापी तथा तीव्रविष सर्पों का ही नाश होगा। धर्मचारी नष्ट नहीं होंगे। महेश्वर ने कहा कर्कोटक की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपना सामुच्य लाभ दिया। तब कर्कोटक देव शरीर में लिंग में विलीन हो गया तथा कर्कोटकेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुआ।

फलश्रुति-

इस शिवलिंग के दर्शन मात्र से विष निष्प्रभावी तथा व्याधि नाश होता है। जो इसकी आराधना करते हैं वे ऐश्वर्यवान होते हैं तथा उनकी सौ पीढ़ी का उद्धार हो जाता है। रविवार, पंचमी किंवा चतुर्दशी को जो मनुष्य इनके दर्शन करता है, उसे सर्पजनित पीड़ा नहीं होती। इसके दर्शन से दुर्भाग्यशालिनी स्त्री भी सौभाग्यवती हो जाती है। तथा वह कुलभूषण, निरोग, स्वस्थ पुत्रलाभ करती है।

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