14/84 महादेव : श्री कुटुम्बेश्वर महादेव मंदिर

By AV NEWS
लेखक – रमेश दीक्षित

यह मंदिर सिंहपुरी में श्री दिसावल परिवार निवास के सामने स्थित है, प्रवेश द्वार उत्तराभिमुख है। अंदर जाते ही बाईं ओर ढाई फीट ऊंचा 25 फीट लंबा चबूतरा है जिसकी दीवारों पर क्रम से सितासित भैरव, श्री भैरव, मां भद्रकाली व अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं।

कुटुम्बेश्वर महादेव मंदिर के 5 फीट ऊंचे प्रवेशद्वार से चार सीढिय़ां उतरने पर गर्भगृह में उत्तरमुखी जलाधारियों के मध्य पृथक-पृथक तीन शिवलिंग प्रतिष्ठित हैं। मध्य में पंचमुखी शिवलिंग हैं, चार मुख 4 दिशाओं में व एक ऊपर की ओर माना गया है। इसके दाएं-बाएं गणेश व कार्तिकेय भी जलाधारी सहित शिवलिंग रूप ही विराजमान हैं। शिवलिंग नागवेष्टित हैं।

मध्य में त्रिशूल-डमरू नहीं है। गर्भगृह में प्रवेश पर बाईं ओर 632 फीट का प्राचीन अद्भुत पाषाण है जिसकी कतारबद्ध आकृतियां बनी हैं व बीच में महावीर या बुद्ध जैसी आकृति दिख रही है। परिक्रमा पथ में देवी त्रिदेव की मूर्ति व दो भारी शिवलिंग ताक में रखे हैं। गर्भगृह के पृष्ठ भाग में सिंदूरचर्चित गणेशजी हैं व अंत में बटुक भैरव की प्रतिमा है। 4 पुराने खंभों की छत के नीचे नंदी विराजित हैं।

शिवलिंग की कथा-

देवासुरों द्वारा समुद्र मंथन के कारण जब भयंकर कालकूट प्रकट हुआ तो सभी विषज्वाला से भयभीत हो महादेव की शरण में आए तब सृष्टि की रक्षार्थ उन्होंने विष कंठ में धारण कर लिया। हे देवी! यह देख तुम भीत हो गई तब मैंने गंगा का स्तवन कर उससे कालकूट को सागर तक पहुंचाने का कहा।

गंगा ने कहा मुझ में यह शक्ति नहीं है। फिर महादेव ने ब्रह्मसमुद्भवा शिप्रा को बुलाया व उससे वहीं बात कही व महाकाल वन जाकर कामेश्वर लिंग के पास एक परम लिंग यह विष नियोजित करने का कहा- ”मेरी आज्ञा है तुम कालकूट लेकर जाओ।” तब शिप्रा ने पूर्वोक्त लिंग पर कालकूट रख दिया। इस लिंग के दर्शन से लोग मरने लगे। त्रैयोक्य में हाहाकार मच गया। ब्राह्मणों ने शंकर से प्रार्थना की। शंकर ने हा यह लिंग स्पर्श योग्य व कुटुम्बवद्र्धक होगा। तभी इसका नाम कुटुम्बेश्वर प्रसिद्ध हुआ।

फलश्रुति-

इसके दर्शन से कुल वृद्धि व धन संपन्नता होती है। नारी आरोग्य तथा सर्वकामना व समृद्धि लाभ पाती है। रविवार व सोमवार को शिप्रा स्नान कर इस लिंग के दर्शन करने से राजसूय व वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।

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