…. यस्य दर्शनयात्रेण यश: कीर्तिश्चजायते।।
लेखक – रमेश दीक्षित
यह मंदिर सिंहपुरी से कार्तिकचौक को जोडऩे वाले मार्ग पर एक गली में पश्चिमाभिमुख होकर स्थित है। इसे खोखा माता की गली भी कहते हैं। मंदिर भवन छोटा-सा है। मंदिर में प्रवेश करते ही बाईं ओर भगवान विष्णु की काले पत्थर में उत्कीर्ण एक कलात्मक मूर्ति है।
दाईं ओर खोखा माता की करीब साढ़े चार फीट ऊंची सिंदूर चर्चित मूर्ति है। जिसके खुले हुए मंह में मिठाई का प्रसाद भरा रहता है। मान्यता है कि मिठाई का टुकड़ा खाने से कैसी भी खांसी हो बंद हो जाती है तथा रोगी फिर मिठाई लाकर मां के मुंह में रख देते हैं।
इसके आगे फिर इंद्रद्युम्नेश्वर शिवलिंग का प्रवेश द्वार है। इसमें पीतल की गोलाकार जलाधारी के मध्य काले पत्थर का नाग से आवेष्टित शिवलिंग है। जलाधारी पर दो शंख, चंद्र व सूर्य उत्कीर्ण है। कार्तिकेय, पार्वती व गणेश भी आसीन, गर्भगृह के सामने काले पत्थर के नंदी बने हैं।
शिवलिंग की कथा-
महादेवजी ने देवी पार्वती से राजा इंद्रद्युम्न के यज्ञों से प्राप्त सर्वथामप्रद-स्वर्ग लाभ किया। फिर पुण्यक्षय होने पर वे भूतल पर पतित हुए। तब उन्होंने महामुनि मार्कंडेय से किस तप से कैसी कीर्ति प्राप्त होती है, यह बताने का निवेदन किया। मार्कंडेय ने कहा कि जब तक भूतल पर कीर्ति घोषित रहती है, तब तक स्वर्ग में निवास प्राप्त होता है।
अत: आप महाकाल वन में जाइए, वहां कल्कलेश्वर के वाम भाग में एक पापहारी लिंग की आराधना करो। वहां आराधना मात्र से उत्तमा कीर्ति एवं सनातन स्वर्ग का लाभ होता है। राजा इंद्रद्युम्न ने वैसा ही किया जिससे उसकी निर्मल कीर्ति उदित हो गई। इसका नाम इंद्रद्युम्नेश्वर लिंग रहेगा।
फलश्रुति-
जो मनुष्य इस लिंग की पूजा करेगा, वह सब पापों से रहित होकर प्रसन्न होकर स्वर्ग गमन करेंगे। जो प्रसंगवश्या भी इसके दर्शन करता है, उसे कीर्ति, यश, पुण्य तथा धर्म की प्राप्ति होती है तथा चौदह इंद्रों के राजत्व पर्यन्त स्वर्ग से पतित नहीं होते। चतुर्दशी तिथि पर इस लिंग के पूजन से मातृ-पितृ कुल का उद्धार होता है।