एकोनविंशतितमं नागचन्द्रेश्वर प्रिये।
निर्माल्यङ्घनात्पापान्मुच्यते यस्य दर्शनात्।।
लेखक – रमेश दीक्षित
पटनी बाजार से गुदरी क्षेत्र में जाते हुए बाईं ओर नागनाथ की गली मेंं श्री प्रतीहारेश्वर लिंग (क्र.20) के पहले यह विशेष महत्व का मंदिर है क्योंकि वैशाख मास में होने वाली पंचक्रोशी यात्रा अथवा अन्य किसी यात्रा के पहले यात्री यहां से बल प्राप्त करते हैं तथा यात्रा पूर्ण कर बल लौटा देते हैं। यह बल अश्व बल का प्रतीत एक मिट्टी का घोड़ा होता है जो यात्रियों को दिया जाता है।
जनश्रुति के अनुसार नगर के 3 कोतवाल कहे जाते हैं- 1. नागचंद्र 2. बलदेव महाराज व 3. कालभैरव (सेनापति)। नागों के राजा तक्षक ही नागचंद्र माने जाते हैं जो नागदा (ह) में पूर्वकाल में हुए जनमेजय सर्पयज्ञ से 9 नाग बचकर भोलेनाथ की शरण में आकर शिवलिंग के रूप में छुप गये थे। यह मंदिर प्रमाणिक रूप से नागचंद्र है। वस्तुत: नागचंद्रेश्वर की दिव्य कलात्मक मूर्ति महाकाल मंदिर में केवल वर्ष में 1 बार नागपंचमी पर दर्शनाथ खुलता है।
मंदिर की प्राचीनता-
मंदिर अति प्राचीन है। प्रवेश द्वार दक्षिणमुखी है, 4 सीढिय़ां स्टील रैलिंग के सहारे उतरकर नागचंद्र शिवलिंग के दर्शन होते हैं जो बड़ी गोलाकृति में 5 इंच ऊंचा है। करीब 42 इंच चौड़ी पीतल की जलाधारी में नाग उत्कीर्ण है जो शिवलिंग को आवृत्त किये है, दोनों कोनों पर शंख, चक्र व सूर्य, चंद्र उकेरे हुए हैं। जल निकासी के पास त्रिशूल गड़ा है। बाएं क्रम से पार्वती की मूर्ति है
जिसके ऊपर 6 इंच ऊंची प्राचीन शिव प्रतिमा है, गणेशजी की पीतल की प्र्रतिमा जिसके ऊपर प्राचीन महालक्ष्मी की मूर्ति है। जलाधारी के पास बाएं काले पत्थर में केदारनाथ की मूर्ति है। प्रेवश द्वार के ऊपर पंक्तिबद्ध 16 मातृकाओं की प्राचीन मूर्तियां, दाएं प्राचीन ताक के ऊपर भैरवजी की तथा बाएं ताक के ऊपर शिव परिवार मूर्तिमंत्र हैं। दोनों ताक की बड़ी मूर्तियां गायब हैं, पता नहीं अतीत में कब चुरा ली गई होंगी।
संदीपनि ऋषि की प्राचीन मूर्ति भी महर्षि सांदीपनि आश्रम से गायब हो गई थी तथा सिद्धनाथ मंदिर परिसर में भी विष्णु की दशावतार कलात्मक मूर्तियां तो हैं किंतु मध्य से विष्णु की मूर्ति गायब है। अतीत में इन कलात्मक मूर्तियों पर मूर्ति चोरों ने हाथ साफ कर दिये होंगे। मंदिर करीब 250 वर्गफीट का सभामण्डप 8 प्राचीन स्तंभों पर आधारित है। पूर्व के निर्गम द्वार के सामने 3 फीट ऊंची आसंदी पर लाल पाषण से निर्मित नंदी की मूर्ति है।
शिवलिंग कथा-
ईश्वर ने पार्वती को सुनाया कि एक बार देव, ऋषि, गंधर्वों की सभा में देवर्षि नारद आये। इन्द्र ने उनसे पृथ्वी पर मुक्ति-मुक्तिदायक क्षेत्र कौन सा है, जानना चाहा। नारद ने महाकाल वन बताया जो प्रयाग से दस गुना अधिक उत्तम है। इंद्र ने अंतरिक्ष से देखा कि इस क्षेत्र में 60 करोड़ सहस्त्र तथा 60 करोड़ शत लिंग विराजमान हैं। वे निर्माल्य दोष से बचने के लिए स्वर्ग लौट गये। एक समय एक प्रधानगण विमान पर बैठकर स्वर्ग जा रहा था, पूछे जाने पर उसने कहा मैंने महाकाल वन मेंं भगवान महाकाल की अर्चना की है, भगवान ने मेरा नाम नागचंद्र रखा है। तब देवगण वहां गये तथा उस लिंग का पूजन किया तथा उसका नाम नागचंद्रेश्वर रखा।
फलश्रुति-
इस लिंग के दर्शन से निर्माल्य का लंघन करने वालों को मुक्ति मिल जाती है तथा मनुष्य सात जन्मों तक आह्लाद, निवृति, स्वास्थ्य, आरोग्य प्राप्त करता है।