लेखक – रमेश दीक्षित
यह मंदिर रामघाट पर श्री पिशाचमुक्तेश्वर मंदिर के दक्षिण में स्थित है। इसका प्रवेश द्वार सामान्य भूतल से नीचे उतरकर केवल 3 फीट ऊंचा और लगभग ढाई फीट चौड़ा है। सम्पूर्ण मंदिर काले पत्थर का बना हुआ है। प्रवेश द्वार के ऊपर मध्यमें गणेशजी की मूर्ति बनी हुई है।
स्कन्दपुराण के अनुसार रथन्तर कल्प में मंकणक नाम के महायोगी जब तप के बल से ढेर सारी सिद्धियां प्राप्तकर भूमंडल पर नाचने और चिल्लाने लगे तब स्वयं शिवजी ने प्रकट होकर योगी से कहा – हे ब्राह्मण योगी! यह कार्य तुम्हारे योग्य नहीं है, अपने मोक्ष हेतु तुम्हें शिप्रा तट स्थित गुह्येश्वर शिवलिंग का पूजन-अर्चन करना चाहिये।
तब योगी ने तत्काल यहां आकर यथाविधि गुह्येश्वर शिवलिंग का पूजन-अर्चन किया, इससे महादेव ने प्रसन्न होकर योगी को अभयदान दिया। इस शिवलिंग के दर्शन से समस्त पापों का नाश हो जाता है।
गुहा में स्थित होने से इसे गुह्येश्वर कहा गया। जो मानव इस शिवलिंग के दर्शन करता है, उसके धर्म और तप में कभी व्याघात नहीं होगा।
अष्टमी तथा चतुर्दशी तिथि पर इस शिवलिंग के दर्शन करने से मनुष्य के पितरों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। मंदिर के सम्मुख एक छोटे मंदिर में भगवान पुरुषोत्तम नारायण की 15 इंच ऊंची संगमरमर की सुंदर चतुर्भुज मूर्ति भी दर्शनीय है।