यस्य दर्शनमात्रेण प्राप्यन्ते सर्वसिद्धय:।।
लेखक – रमेश दीक्षित
यह मंदिर छोटा सराफा स्थित श्री लक्ष्मी-नृसिंह मंदिर भवन के पास दाईं ओर जाने वाली गली में सामने बाईं ओर जाकर स्थित है। प्रवेश द्वार की बाहरी चौखट पर ग्रेनाइट टाइल्स जड़े हैं व भीतरी द्वार स्टील का है। लगभग 40 वर्गफीट आकार के गर्भगृह के मध्य में मूल देवता श्री मेघनादेश्वर शिवलिंग रूप में काले पाषण रूप में विराजित हैं।
जिनकी बाईं ओर लिंग रूप में सूर्यदेव व दाईं ओर चंद्रदेव पृथक-पृथक पीतल की जलाधारी सहित प्रतिष्ठित हैं। पास ही 3.6 फीट ऊंचा पीतल का त्रिशूल गड़ा है। बाईं ओर ब्रह्मा व पार्वती की मूर्ति है, जबकि दाईं ओर गणेशजी की। सामने की ओर दाएं कोने में 30 इंच ऊंची विष्णु की पूर्ण मूर्ति है, जबकि मध्यम में प्राचीन मंदिर का भग्न स्तंभ एक 6 इंच ऊंची गणेशजी की काले पत्थर की मूूर्ति दर्शाता है।
माहात्म्य की कथा-
महादेवजी ने एक बार देवी पार्वती से कहा कि राजा ही धर्म का कारण है। एक बार इंद्र प्रतिकूल होकर अनावृष्टि का कारण बने। समग्र सृष्टि का उन्मूलन होने लगा। सभी देवता जनार्दन के पास श्वेतद्वीप गए। वहां देवताओं ने श्रीहरि की स्तुति की।
तब श्रीहरि ने उन्हें महाकाल वन भेजा तथा एक वृष्टिप्रद लिंग की उपासना करने को कहा देवताओं ने महेश से कहा कि अनावृष्टि से यह जगह प्रपीडि़त है। इस स्तव से इस लिंग से पार्वण के अंगार जैसे मेघगया निकले तथा गंभीर मेघ गर्जना के बाद दसों दिशाओं से वर्षा से अंधकार छा गया। लिंग के प्रभाव से पुन: सृष्टि शस्य हो गई।
फलश्रुति-
इस मेघनादेश्वर शिवलिंग की प्रार्थना से सर्वसिद्धि की प्राप्ति तथा यथेष्ट वृष्टि होती है। लिंग को स्नान कराने वाला व्यक्ति सहस्र कोटिकल्प पर्यंत रूद्रलोक में महिमान्वित होता है। इस लिंग का माहात्म्य पढऩे
से भी अतिवृष्टि होती है।