24/84 महादेव : श्री महालयेश्वर महादेव मंदिर

य: पूजयति तल्लिंग रुद्रमूत्र्या महालयम्।
त्रैलाक्यविजयी नित्यं कीर्तिमान्स नरो भवेत्।।
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लेखक – रमेश दीक्षित
यह मंदिर एक खुले चौक में खत्रीवाड़ा में स्थित है। मूल मंदिर के बाहर करीब 700 वर्गफीट का खुला आंगन है। करीब 40 वर्गफीट आकार के गर्भगृह में लगभग 30 इंच चौड़ी पीतल की जलाधारी के मध्य करीब 3 इंच ऊंचा काले पत्थर का शिवलिंग प्रतिष्ठित है जिसमें चारों ओर पीतल का नाग लिपटा हुआ है। जलाधारी पर 2 शंख तथा सूर्य व चंद्र की आकृतियां उत्कीर्ण हैं। समीप ही त्रिशूल गड़ा है। 3 लाखों में क्रमश: गणेश, पार्वती व कार्तिकेय की मूर्तियां स्थापित हैं। बाहर वाहन नंदी विराजित हैं।
शिवलिंग की माहात्म्य कथा:-
महादेव से एक बार पार्वती ने पूछा कि आपने ब्रह्मा से तृण पर्यन्त समस्त जगत् का उत्पादन किया है। आप ही त्रिलोकी के कारण हैं। आप यह बताएं कि आप कहां स्थित होकर चराचर जगत् की सृष्टि तथा संहार करते हैं। हे देवी! तब मैंने कहा था कि प्रलयकाल में मैं पृथ्वी आदि भूतसमूह को महाकालवन स्थित महालय के एक देश में धारण करता हूं।
यह स्थान ब्रह्मलोक आदि से भी उत्तम गुण संपन्न तथा महाआनंदप्रद है। इस लिंग ने ही समस्त जगत् को घेर रखा है। स्थल-जल-आकाश-चतुर्विध सृष्टि इसी लिंग में लक्षित है। यह लिंग तीनों लोकों में महालय नाम से विख्यात है।
फलश्रुति:-
जो मनुष्य रुद्रमूर्ति महालया लिंग की पूजा करते हैं, वे त्रैलोक्य, विजेता तथा कीर्तिवान् होते हैं। भक्तिपूर्वक इसकी पूजा करते समय देवगण सुपूजित हो जाते हैं।