ये चायान्ति नरास्तस्यां देवं चानरकेश्वरम्।
उपाष्यपापैर्मुच्यन्ते नरा: शतजन्मजै:।।
उपाष्यपापैर्मुच्यन्ते नरा: शतजन्मजै:।।
लेखक – रमेश दीक्षित
इंदिरानगर के तालाब के पास होली फेमली स्कूल के समीप करीब 7 फीट ऊंचे 1450 वर्गफीट आकार के प्लेटफार्म पर यह पूर्वाभिमुख 5 फीट ऊंचे 1 लोहे की चैनल 2 स्टील के प्रवेश द्वार वाला अनरकेश्वर महादेव मंदिर अन्य मंदिरों से भिन्न है। गर्भगृह लगभग ५० वर्गफीट आकार का है जिसके बीच 10 इंच ऊंचा काले पत्थर का पीतल के नाग से आवेष्ठित शिवलिंग स्थित है। शिवलिंग पर नाग फन उठाए हुए हैं, पीतल की करीब 40 इंच चौड़ी जलाधारी पर सूर्य व चंद्र की आकृतियां उत्कीर्ण हैं। संपूर्ण गर्भगृह में टाइल्स जड़े हैं।
Contents
ये चायान्ति नरास्तस्यां देवं चानरकेश्वरम्।
उपाष्यपापैर्मुच्यन्ते नरा: शतजन्मजै:।।लेखक – रमेश दीक्षितमंदिर के सामने ढंका हुआ बड़ा सभामंडप है तथा मंदिर के पूर्व व उत्तर दिशाओं में 2 बड़े सभागृह बने हैं जहां भंडारे होते हैं। श्री चांदनारायण राजदान ने अपने पिता की स्मृति में
वि. स्. १८८१ में मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।शिवलिंग की माहात्म्य कथा:-महादेवजी ने पार्वती को कहा पूर्वकाल में सतयुग के अवसान होने पर वराह कल्पस्थ कलियुग में मनुष्य नास्तिक व विप्रगण देर्वाचन त्याग कर कुत्सित कर्म करने लगे। नर-नारीगण नरकगामी होने लगे तथा वे यमदूतों के हाथों भयंकर यातना भोगने लगे। निमि राजा ने यममार्ग का दर्शन किया था। राजा ने पूछा- हे यमपुरुष! मैंने कौन सा पाप किया है? प्रणाम करके यमगण ने कहा ‘आपने प्रमादवशात् श्राद्ध में दक्षिणा प्रदान नहीं किया था तभी आपको यह नरक दर्शन मिला। आपने अन्य कोई पाप नहीं है।आप अब पुण्य उपभोग हेतु आइये।राजा निमि जिधर से जाते, उधर नरकभोगी आनंद अनुभव करते। राजा ने कहा मेरे रुकने से उन्हें सुख मिलता है तो मैं यही ठहर जाता हूं। तब धर्मदेव व इंद्र ने वहां आकर कहा हे निमि! देवता आप पर प्रसन्न हैं। आपने अक्षय सिद्धि तथा अक्षय लोक पाया है।राजा ने अपने पुण्य का कारण जानना चाहा। धर्म ने कहा आपने आश्विन चतुर्दशी के दिन महाकालवन में अनरकेश्वर का दर्शन किया था, इस पुण्य की सीमा नहीं। राजा के इस पुण्य के कलामात्र से नरकगामियों को मुक्ति मिल गई।फलश्रुति:-अनरकेश्वर शिवलिंग के दर्शन मात्र से स्वप्न में भी नरक दर्शन नहीं होता तथा अपने पूर्व वाले व आगे उत्पन्न होने वाले सभी १० हजार पीढ़ी के लोगों को शिवलोक में भेज देता है। जो मनुष्य शिवप्रिय कृष्ण चतुर्दशी को यहां आकर उपवास करता है, वह सौ जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है।
मंदिर के सामने ढंका हुआ बड़ा सभामंडप है तथा मंदिर के पूर्व व उत्तर दिशाओं में 2 बड़े सभागृह बने हैं जहां भंडारे होते हैं। श्री चांदनारायण राजदान ने अपने पिता की स्मृति में
वि. स्. १८८१ में मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
वि. स्. १८८१ में मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।