28/84 महादेव : श्री जटेश्वर महादेव मंदिर

By AV NEWS

मांगल्यमिदमायुष्यं धर्मकामाश्रयंमहत्।
लेखक – रमेश दीक्षित

श्राद्ध पक्ष में पितृ कर्म के लिए पुराण प्रसिद्ध श्री गयाकोठा तीर्थ के सामने उसी परिसर में जटेश्वर शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के दो द्वार है। करीब ४० इंच चौड़ी पीतल की जलाधारी के मध्य सीधा गोलाकार लगभग २ फीट ऊंचा काले पत्थर का शिवलिंग स्थापित है।शिवङ्क्षलग पर न तो नागाकृति आवेष्ठित है और न ही उस पर नाग फन की छाया है। हां समीप ही पीतल के दो त्रिशूल गढ़े हैं।

जिसमें से एक पर नाग सर्पाकार लिपटा हुआ है। जलाधारी के कोई 1 फीट दूर ही संगमरमर के कलात्मक वाहन नंदी चौकी पर विराजमान है। मंदिर कक्ष की चारों दीवारें ऊपर से आधी खुली है। जिन पर लोहे की ग्रील लगी है। यहां लिंग माहात्म्य कथा का विकास प्राधिकरण का बोर्ड गायब है।

शिवलिंग के माहात्म्य की कथा:-

महादेव ने पार्वती से कहा कि एक बार राजा वीरधन्वा ने आखेट में अनेक मृगों के साथ ही मुनि प्रवर संवर्त के पांच मृग रूप पुत्र भी तत्काल मृत हो गए। वहां पांच पुत्रों के लिए प्रायश्चित विधान चर्चा के मध्य भृगु, अंगिरा व अत्रि जा पहुंचे तथा प्रायश्चित विधान कहने लगे। उन्होंने मुनि संवर्त के पांचों पुत्रों के लिए मृगचर्म पहनकर पांच वर्ष तक व्रत्ताचरण का प्रायश्चित बताया। राजा वीरधन्वा ने इन्हें भी मृग समझकर बाणों से विद्ध कर दिया।

राजा ने सारा वृतांत महर्षि देवरात को सुनाया और ब्रह्म हत्या से मुक्ति का उपाय पूछा। महर्षि को निस्तेज दुरात्या समझकर राजा ने उसका बाद में सवत्वा कपिला गौ का गालव ऋषि के आश्रम में वध कर डाला। फिर वह वामदेव ऋषि के आश्रम जा पहुंचा। ऋषि ने उसकी रक्षा करने केलिए कहा।

वामदेव ने उसे ब्रह्म हत्या व अन्य पापों से मुक्ति के लिए महाकालवन में जगतवंद्य जटेश्वर लिंग के पास भेजा। राजा ने उस लिंग का दर्शन किया तथा परम भक्तियुक्त होकर उनकी स्तुति की। महादेव ने लिंग से प्रकट होकर राजा के जटीभूत पाप नष्ट कर दिए।

फलश्रुति:-

इस लिंग के दर्शन मात्र से मानव मुक्तिलाभ करता है। कथा का माहात्म्य सुनने वाले सर्वअभिलाषित लाभ पति है। दुर्भगा नारी सौभाग्य पाती है। गर्भवती नारी आरोग्यवान पुत्र लाभ करती है। वह पुत्र कभी अपमृत्यु ग्रसित नहीं होता। कथा सुनने से दु:स्वप्न जनित भय, पापजभय, दुर्जन स्पर्श नष्ट होता है। श्राद्ध पक्ष में जटेश्वर माहात्म्य पढऩे से श्राद्ध पितरों हेतु प्रीतिकर हो जाता है। जो जटेश्वर का अर्चन करते हैं। उनको बल, सौभाग्य और प्रभाव की प्राप्ति होती है।

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