29/84 महादेव : श्री रामेश्वर महादेव मंदिर

ये हताभिमुखा: शूरागोविप्रार्थे रणाजिरे।
गतिरभ्यधिकातेभ्यो दृष्ट्वारामेश्वरंशिवय्।।
लेखक – रमेश दीक्षित
यह मंदिर नगर के व्यस्ततम कंठाल-सराफा मार्ग पर सती द्वार के पास उत्तर की ओर ज रही गली में स्थित है। प्रवेश द्वार केवल 4 फीट ऊंचा है, अंदर लकड़ी व स्टील का द्वार है। रामेश्वर मंदिर में 9 इंच ऊंचे श्याम वर्ण लिंग कोई 7 इंची ऊंची तांबे की सुंदर जलाधारी में प्रतिष्ठित है।
प्रवेश करने पर बाईं ओर कार्तिकेय, सामने गणेश व पार्वती तथा दाईं ओर ताक में गणेशजी की सिंदूरचर्चित मूर्ति है। सामने की दीवार पर पार्वती की मूर्ति के ऊपर अति प्राचीन पाषाण की प्रतिमा है। जिस पर परशुरामजी, वामन भगवान और नृसिंह भगवान के नाम लिखे हैं पर आकृतियां स्पष्ट नहीं हं बाहर काले पाषाण में नंदी स्थापित हैं।
शिवलिंग के माहात्म्य की कथा:-
महादेव ने पार्वती को भगवान परशुराम की वह कथा सुनाई जिसमें उन्होंने माता रेणुका का सिर काट दिया था। जमदग्नि ने प्रयत्न होकर उसे क्षत्रियों के संहार हेतु अग्नि वाला से उत्पन्न परशु भेंट किया जिससे वे भूमंडल पर अजेय रहेंगे। एक बार हैहयवंशी सहस्रार्जुन ने कामधेनु के लिए जमदग्नि का सिर काट डाला।
पिता की हत्या से क्रोधित परशुराम ने न केवल सहस्रार्जुन के हजारों हाथों को काट दिया था अपितु पृथ्वी को 21 बार क्षत्रियविहीन कर दिया था। ब्रह्महत्या से मुक्त हेतु परशुमराजी ने नारदजी को सुझाव पर महाकालवन आकर इस दिव्य लिंग की उपासना की। प्रसन्न होकर भगवान आशुतोष ने उन्हें अपूर्व शक्ति और असीम भक्ति का वरदान दिया।
परशुराम द्वारा पूजित होने से यह लिंग रामेश्वर कहा गया।परशुराम ने भगवान शिव से कहा- हे देव! आपके रणकालों के प्रति मेरी अनन्य भक्ति हो। शिव ने ब्राह्मणों हेतु दुष्प्राप्य बाजपेयादि यज्ञानुष्ठान रामेश्वर दर्शन से सुलभ करा दिए।
फलश्रुति:-
रामेश्वर ङ्क्षलग की पूजा करने वाले व्यक्ति के जन्म से लेकर अब तक किए पाप तत्क्षण नष्ट हो जाएंगे। वह इस लोक में पूय तथा पुण्यात्मा होगा। हजारों ब्रह्महत्या संबंधी जो सब घोर पातक हैं, इस लिंग दर्शन से उनका विलय हो जाता है। जो सभी शूर गाय अथवा ब्राह्मण के लिए युद्ध में जीवन विसर्जन करते हैं, इनसे भी अधिक पुण्य रामेश्वर दर्शन से पाते हैं।
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