30 दिन : 1500 शिकार स्ट्रीट डॉग हो रहे खूंखार

सुप्रीम कोर्ट का फरमान- शहर में कितना असरदार : डॉग बाइट के रोज 50 मामले
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समस्या से खुद ही निपटना होगा
नगर निगम के पास नहीं है ठेकेदार
अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर को आवारा कुत्तों से मुक्त करने के लिए 8 सप्ताह का समय दिया है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश रुलिंग माना जाता है और इसका असर मध्यप्रदेश और उज्जैन शहर में कितना होगा..? यह तो जिम्मेदार बताएंगे। लेकिन सच्चाई यह है कि दिल्ली की तरह उज्जैनवासी भी स्ट्रीट डॉग से परेशान हैं। हर महीने सिर्फ जिला अस्पताल में ही करीब 1500 डॉग बाइट के मामले आ रहे हैं। कई ऐसे प्रभावित जो निजी अस्पतालों में इलाज करा रहे हैें, वे इन आंकड़ों में शामिल नहीं है। ऐसे में देखा जाए तो सिर्फ शहर में ही करीब दो हजार से अधिक लोग हर महीने डॉग बाइट का शिकार हो रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बार सख्त आदेश देते हुए स्पष्ट किया है कि इस काम में कोई ढिलाई बर्दाश्त नहीं होगी और अगर कोई व्यक्ति या संगठन इसके बीच में आया, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने दिल्ली के लिए आदेश में कहा है कि कुत्ते हटाएं और जरूरत हो तो इसके लिए अलग बल बनाएं। लेकिन उज्जैन में हालात अलग हैं। नगर निगम ने सदावल में कुता हाउस (शेल्टर होम) बना रखा है जिसका उपयोग स्ट्रीट डॉग्स की नसबंदी के लिए होता है। लेकिन पिछले करीब ४ महीने से नगर निगम के पास स्ट्रीट डॉग पकडऩे के लिए ठेकेदार ही नहीं है। नगर निगम यह ठेका डॉग को पकडक़र उसकी नसबंदी करने और वापस उसी मोहल्ले में छोडऩे के लिए देता है। इसके लिए प्रति नसबंदी करीब 800 से 1000 रुपए का वजट होता है।
सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के मुताबिक करेंगे नई प्लानिंग
नगर निगम की स्वास्थ्य समिति प्रभारी सत्यनारायण चौहान बताते हैं कि अभी तक सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के मुताबिक ही स्ट्रीट डॉग को पकडक़र नसबंदी के बाद उसी मोहल्ले में छोड़ देते थे। इसके लिए नई एजेंसी की तलाश चल रही है। अब सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर को लेकर जो नया फैसला लिया है। उस पर विचार-विमश करेंगे और स्ट्रीट डॉग्स की समस्या से मुक्ति के लिए नई प्लानिंग करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट आदेश के मुख्य बिंदु जो बन सकते हैं गाइड लाइन
- डॉग शेल्टर बनाएं।
- नसबंदी के बाद कुत्तों को वापस रहवासी क्षेत्रों में न छोड़ें।
- संवेदनशील इलाकों से शुरुआत करें।
- बाधा डालने वालों पर कार्रवाई करें।
- डॉग बाइट और रेबीज के लिए हेल्पलाइन बनाएं।
दो मामलों से समझे, डॉग बाइट कितना खतरनाक
4 अक्टूबर 2024 – केटी गेट क्षेत्र में 7 साल की अनसिया पिता मुस्तफा लोहावाला अपने घर के बाहर खेल रही थी। तभी एक स्ट्रीट डॉग बच्ची के पीछे लपका। दौडऩे में बच्ची नीचे गिर कर बेहोश हो गई। अस्पताल में मौत हो गई।
6 सितंबर 2024 – नागझिरी के गणेश नगर के रहने वाले ऑटो चालक मनोज शर्मा का बड़ा बेटा सोनू शर्मा की 6 सितंबर को इंदौर में रेबीज के कारण मौत हो गई। उसे घटना के 20 दिन पहले फैक्ट्री पर जाते वक्त स्ट्रीट डॉग ने काटा था।
ग्रुप में आक्रमण करेंगे शिकार इनकी प्रवृत्ति
नसबंदी के बाद डॉग्स के व्यवहार में सुधार होता है। कुत्ते शिकारी पशु हैं अगर इनकी संख्या बढ़ती है तो ग्रुप में आते ही इनकी आक्रामकता बढ़ जाती है। इस कारण इनकी संख्या कम रहना जरूरी है। इसके अलावा पर्याप्त भोजन नहीं मिलना भी इन्हें आक्रामक बनाता है। संख्या अधिक होने पर इन्हें पेटभर भोजन नहीं मिल पाता। भूख-प्यास से चिड़चिड़े होकर ये शिकार पर उतारू हो जाते हैं।
– डॉ. सतीश कुमार शर्मा
पशु चिकित्सक
डॉग बाइट
मई – 1417
जून – 1552
जुलाई – 1512
(जिला अस्पताल रिकार्ड के मुताबिक)