सुहागिन महिलाओं के जीवन में करवा चौथ (Karwa Chauth) का खास महत्व होता है। महिलाओं पूरे साल इस विशेष दिन का इंतजार करती हैं। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। रात में चंद्रमा की पूजा के बाद पति का चेहरा देखते हुए अन्न जल ग्रहण करती हैं। Karwa Chauth का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस साल करवा चौथ का व्रत 4 नवंबर, बुधवार को रखा जाएगा। Karwa Chauth खासतौर पर पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार, मध्यप्रदेश में मनाया जाता है।
करवा चौथ का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस साल चतुर्थी तिथि का आरंभ 4 नवंबर को 03:24 पर होगा और यह 5 नवंबर शाम 5:14 तक रहेगी। इस वर्ष करवा चौथ व्रत पर पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 5:29 बजे से 6:48 बजे तक का रहेगा। इस दिन चंद्रोदय रात 8:16 बजे पर होगा।
करवा चौथे की पूजा विधि
करवा चौथ पर दिनभर व्रत रखा जाता है और रात में चंद्रमा की पूजा की जाती है। इसके लिए पूजा-स्थल को खड़िया मिट्टी से सजाया जाता है और पार्वती की प्रतिमा की भी स्थापना की जाती है। पारंपरिक तौर पर पूजा की जाती है और करवा चौथ की कथा सुनाई जाती है। करवा चौथ का व्रत चांद देखकर खोला जाता है, उस मौके पर पति भी साथ होता है। दीए जलाकर पूजा की शुरुआत की जाती है। करवा चौथ की पूजा में जल से भरा मिट्टी का टोंटीदार कुल्हड़ यानी करवा, ऊपर दीपक पर रखी विशेष वस्तुएं, श्रंगार की सभी नई वस्तुएं जरूरी होती है। पूजा की थाली में रोली, चावल, धूप, दीप, फूल के साथ दूब अवश्य रहती है। शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय की मिट्टी की मूर्तियों को भी पाट पर दूब में बिठाते हैं। बालू या सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर भी सभी देवताओं को विराजित करने का विधान है। अब तो घरों में चांदी के शिव-पार्वती पूजा के लिए रख लिए जाते हैं। थाली को सजाकर चांद को अर्घ्य दिया जाता है। फिर पति के हाथों से मीठा पानी पीकर दिन भर का व्रत खोला जाता है। उसके बाद परिवार सहित खाना होता है।
इसलिए किए जाते हैं छलनी की ओट से चंद्रदर्शन
Karwa Chauth को लेकर मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें सीधे नहीं देखी जाती हैं, उसके मध्य किसी पात्र या छलनी द्वारा देखने की परंपरा है क्योंकि चंद्रमा की किरणें अपनी कलाओं में विशेष प्रभावी रहती हैं। जो लोक परंपरा में चंद्रमा के साथ पति-पत्नी के संबंध को उजास से भर देती हैं। चूंकि चंद्र के तुल्य ही पति को भी माना गया है, इसलिए चंद्रमा को देखने के बाद तुरंत उसी छलनी से पति को देखा जाता है। इसका एक और कारण बताया जाता है कि चंद्रमा को भी नजर न लगे और पति-पत्नी के संबंध में भी मधुरता बनी रहे।
करवा चौथ क्यों मनाया जाता है
करवा चौथ के बारे में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जिनमें महाभारत की कथा का उल्लेख किया जाता है। मान्यता है कि इस पर्व की शुरुआत महाभारत काल से ही हुई है। किंवदंती है कि द्रोपदी ने सर्वप्रथम करवा चौथ का व्रत किया था। यह बात कहां तक सच है इस बारे में कई मतभेद हैं। जब अर्जुन नीलगिरी की पहाड़ियों में घोर तपस्या कर रहे थे, तब 4 पांडवों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। द्रोपदी ने यह बात श्रीकृष्ण को बताई। तब श्रीकृष्ण भगवान ने द्रोपदी को करवा चौथ व्रत रखने की सलाह दी थी।
कहा जाता है कि करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी, जो अपने पति से बहुत प्रेम करती थी। इस तरह उसमें एर दिव्य शक्ति का वास हो गया था। एक दिन नदी में नहाते समय एक मगरमच्छ ने उसके पति को पकड़ लिया। करवा ने यम देवता का आह्वान कर मगरमच्छ को यमलोक भेजने व अपने पति को सुरक्षित वापिस करने को कहा और बोली कि यदि मेरे सुहाग को कुछ हुआ तो अपनी पतिव्रत शक्ति से यम देव व यमलोक नष्ट कर दूंगी।
कहते हैं कि यमराज ने उसकी दिव्य शक्ति व पतिव्रत धर्म से घबराकर उसके पति को सुरक्षित वापिस कर दिया व मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया। मान्यता है कि इस दिन से ही गणेश चतुर्थी को पूरी श्रद्धा व विश्वास से पति की दीर्घायु के लिए स्त्रियों द्वारा मनाया जाने लगा व इस दिन कार्तिक चतुर्थी को करवा चौथ के नाम से पहचाना जाने लगा।