4/84 महादेव : श्री डमरूकेश्वर महादेव मंदिर

ख्यातो ऽ वन्त्यां चतुर्थोऽ सौ देवो डमरूकेश्वर।

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दुष्टे यस्मि जगन्नाथे याति पाप च संक्षयम्।।

लेखक – रमेश दीक्षित

पुण्य सलिला शिप्रा नदी के सुपावट तट रामघाट पर व गुरु व्यायामशाला की ओर जाने वालेे सीढिय़ों वाले मार्ग के दांई ओर श्री डमरूकेश्वर महादेव का मंदिर है।

मंदिर के गर्भगृह में पीतल की जलाधारी के मध्य करीब 9 इंच ऊंचा काले पाषाण का शिवलिंग स्थित है, शिवलिंग के समीप देवमूर्ति के आयुध डमरू व त्रिशुल लगे हुए हैं, जलाधारी की जल निकासी उत्तर की ओर है, जबकि मंदिर का प्रवेश द्वारा पूर्व दिशा में है। नंदी की प्राचीन प्रतिमा छोटे से सभामंडप में बाहर स्थापित है। गर्भगृह में गणेशजी व पार्वतीजी की मूत्र्तियां हैं किंतु कार्तिकेय की दृष्टण्य नहीं है।

कथा कहती है कि वैवस्वत मन्वंतर में दैत्य रूय के महाबली पुत्र वज्रदैत्य के प्रताप से देवता अपनी समस्त सम्पदा छिन जाने से व्याकुल थे।

वे ब्रह्मा के पास गये लेकिन वे भी निरुपाय थे। उस समय पूरी पृथ्वी हाहाकार मय हो गई। उसी समय तेज: पुंजयुक्त एक कृत्या प्रकट हुई।

देवताओं ने उसे अपना मन्तव्य बताया। तब अनेक ज्वालामुख से युक्त कन्याओं ने उस दैत्य से भयावह युद्ध किया किंतु वह देवताओं को नष्ट करने के उद्देश्य से महाकाल वन पहुंचा।

जब यह समाचार देवर्षि नारद से महादेव को मन्दरचल की गुफा में जाकर सुनाया तो उन्होंने भैरव वेष धारण भयानक रूप से डमरू बजाया। जिससे पृथ्वी विदीर्ण होकर एक उत्तम शिवलिंग प्रकट हुआ। उस लिंग से महाज्वाला प्रकट हुई जिससे वज्रदैत्य की सेना का संहार हो गया।

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