43/84 महादेव : श्री अंगारेश्वर महादेव मंदिर

By AV NEWS

वाराणस्यां प्रयागे च कुरुक्षेत्रे च यत्फलम्।
गयायां पुष्करे प्रंक्ति तत्पुण्यमधिकं भवेत्।।

(अर्थात्- वाराणसी, कुुरुक्षेत्र गया तथा पुष्कर में जो पुण्य प्राप्त होता है, यहां अंगारेश्वर ङ्क्षलग के दर्शन से उससे भी अधिक पुण्यलाभ होगा।)
यह मंदिर उज्जैन के उत्तरी भाग में मंगलनाथ मंदिर के आगे ग्राम कमेड में मुख्य मार्ग से पुल के बाईं ओर उतरकर पक्की रोड पर शिप्रा नदी के किनारे स्थित है। धधकते हुए अंगारे जैसे गहरे लाल रंग में पेंट किए हुए पिलर्स से यह मंदिर अपनी अलग ही पहचान रखता है। मंदिर चारों ओर से खुला है तथा तेज बारिश में श्रद्धालुओं को बैठने की जगह भी नहीं मिलती है, कहीं शेड नहीं हैं।
यहां २४ पिलर्स पर मूल देवालय का ढांचा बना है जबकि 12 पिलर्स पर मंदिर का विस्तार है।यह मंदिर भूमिपुत्र मंगल ग्रह का जन्म स्थान है। यहां पूरे सप्ताह, विशेषत: मंगलवार को, प्रात: ८ से अपराह्न 4 बजे तक मंगल की प्रसन्नता के लिए भात-पूजा की जाती है। संपूर्ण व्यवस्थाओं हेतु शासकीय प्रशासक की देखरेख रहती है। मंदिर का गर्भगृह करीब 150 वर्गफीट है। जिसके मध्य में करीब 4 फीट चौड़ी पीतल का जलाधारी बॉर्डर सहित लगी है,
जिस पर ú नम: शिवाय अंकित है। जलाधारी पर 2 शंख तथा सूर्य चंद्र उत्कीर्ण हंै। मध्य में स्थित लिंग आकार में छोटा है।समीप ही संगमरमर की मेष (मेंडा) वाहन की मूर्ति है। जबकि पंचधातु निर्मित मेंडा ढाई फीट ऊंचे सान पर विराजित है। गर्भगृह में गणेश, पार्वती और कार्तिकेय की मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। यह मंदिर शिप्रा-खगर्ता संगम पर स्थित है। आरतियां प्रात: ७.३० व शाम 5.३० पर होती है।

लिंग माहात्म्य की कथा-

महादेव ने पार्वती से कहा कि पूर्व वाले आदिकल्प में मेरे देह से रौद्र अंगार जैसे लोहित छवि वाला वक्रांग पैदा हुआ जिसे मैंने धराधाम में प्रसिद्ध कर दिया। जब इसका जन्म हुआ तो धरती कांपने तथा समुद्र क्षुब्ध हो उठा। सभी देवता ब्रह्मा के सज्ञथ मेरे पास आए तथा बताया कि मंगल से समस्त जगत पीडि़त है।
जब मंगल को बुलाया गया तो महादेव ने उसे मंगलमय करके उसके लिए उत्तम स्थान, आधिपत्य, शक्ति तथा आहार निश्चित किया। महादेव ने उसे शिप्रा-खगर्ता संगम पर पवित्रतम स्थान पर लिंगरूप में अवतीर्ण किया। इसे अंगारेश्वर कहा गया।

फलश्रुति-

जो व्यक्ति मंगलवार को इस लिंग की पूजा करेंगे वे घोर कलिकाल में कृतर्था होंगे तथा उनका पुनर्जन्म नहीं होगा। अंगारेश्वर के दर्शन से सभी संपदा मिल जाती है।
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