47/84 महादेव : श्री नूपुरेश्वर महादेव मंदिर

कृष्णाष्टम्यां च य: स्नात्वा पूजयेन्नूपुरेश्वरम्।
कुलं वै तारयेत्सोऽपि मातृकं पितृकं शतम्।।

(अर्थात- जो व्यक्ति कृष्णपक्षीय अष्टमी के दिन यहां स्नान करके नूपुरेश्वर की पूजा करता है, वह अपने पितृ-मातृ कुल का उद्धार कर देता है।)
यह मंदिर शहर की सघन बस्ती डाबरीपीठा में तंग गलियों के रास्ते जाने पर स्थित है। इसका साढ़े चार फीट ऊंचा पूर्वाभिमुख द्वार बाहर पत्थर की चौखट से बना है, भीतर स्टील द्वार है। गर्भगृह में करीब २ फीट चौड़ी पीतल की जलाधारी पर ८ इंच ऊंचा नाग की आकृति से आवेष्ठित लिंग प्रतिष्ठित है
जिस पर एक नाग छाया किये हुए है। २ फीट ऊंचा पीतल का त्रिशूल गड़ा है। गर्भगृह में दाईं ओर कार्तिकेय व सामने देवी पार्वती की प्रस्तर निर्मित श्याम वर्ण नयनाभिराम मूर्तियां स्थापित हैं, जबकि बाईं ओर सिंदूरचर्चित गणेश प्रतिमा है।

लिंग माहात्म्य की कथा-

महादेव ने पार्वती को कथा सुनाई कि पूर्व में राथन्तर कल्प में रूद्रभक्त नूपुर कुबेर की सभा में अप्सराओं के महोत्सव को देखने गया तथा कामप्रेरित होकर उनके बीच नृत्य करने लगा।
कुबेर ने क्रोधित होकर उसे मनुष्यलोक में पतित कर दिया। वही गण अति विलाप करते हुए तुम्हारी शरण मेें गया तथा उसे शुभ महाकालवन में एक लिंग विशेष आराधना करने का कहना उसने वहां पहुंचकर देव-गन्धर्व सेवित लिंग का दर्शन किया। वहां प्राची सरस्वती वापी के आकार में विद्यमान थी।
इस पूजा से प्रसन्न होकर महादेव ने नूपुर के मंगल की कामना की। वह गण देवताओं के लिए भी तेजराशि सम्पन्न हो गया। देवताओं ने कहा कि नूपुर ने लिंग दर्शन से ही सिद्धिलाभ कर लिया अत: यह लिंग नूपुरेश्वर के नाम से लोकप्रसिद्ध होगा।

फलश्रुति-

वापी में स्नानोपरांत नूपुरेश्वर के दर्शन करने वाला परम पद प्राप्त करेगा। जो भक्तिपूर्वक पूजा करेंगे वे प्रलय पर्यंत मुदित होकर स्वर्ग में निवास करेंगे तथा जन्म, मृत्यु, जरा, रोग तथा नाना दु:ख सदा विलीन हो जाएंगे।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

Related Articles