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5/84 महादेव:श्री अनादिकल्पेश्वर महादेव मंदिर

ना वायुर्न जलं चैव न धौर्नेन्दुग्र्रहा न च।
न देवासुरगन्धर्वा न पिशाचा न राक्षसा:।।३।।

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अतो लिंगात्समुद्रतं जगत्स्थावरजङ्गमम्।
कालेन न लयं याति लिङ्गे ऽ स्मिन्पर्वतात्मजे।।४।।

लेखक – रमेश दीक्षित

रुद्र ने पार्वती से कहा- जब अग्नि, आदित्य भूमि, दिक्, आकाश, वायु, जल, स्वर्ग, ग्रह, इंदू, देव, असुर, गंधर्व, पिशाच, राक्षसादि कुछ भी नहीं ये उस कल्प के आदिकाल में इस लिंग का आविर्भाव हुआ। काल आने पर समस्त जगत् इस लिंग में लयीभूत हो जाता है।

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महाकाल मंदिर परिसर के दक्षिण-पश्चिम कोण में यह भव्य मंदिर स्थित है। इसका गर्भगृह करीब 100वर्गफीट है। इसके मध्य में करीब डेढ़ फीट ऊंचा लाल-भूरे रंग का प्राचीन शिवलिंग स्थापित है। जलाधारी का आकार 6 फीट है, पास ही दर्शनीय 6 फीट ऊंचा त्रिशूल स्थित है जिसके शूलों पर गणेश, पार्वती की आकृतियां हैं व मध्य में ú चिह्न उत्कीर्ण है। शिवलिंग पर3 फीट ऊंचा व 5 फणों वाला भव्य नाग छाया किये हुए है। प्रवेश द्वार के ऊपर शिव-पार्वती का नंदी पर सवारी किये और अन्य अतिप्राचीन मूर्तियां हैं। गर्भगृह के सामने 6 फीट ऊंची आसंदी पर नंदी की प्राचीन मूर्ति स्थापित है। महाकाल मंदिर के बाद भव्यता में यह मंदिर दूसरे क्रम पर है।

इस अनादि कल्पेश्वर शिवलिंग की विशेषता है कि यह अनादि कारण है तथा यह प्रलयांत में भी विद्यमान रहता है। ये देव अनादि तथा जगत्कारण के भी कारण हैं।

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एक बार ब्रह्मा और केशव में श्रेष्ठ कौन है, इसे लेकर विवाद हुआ। तब आकाशवाणी ने कह – ” महाकाल वन में कल्पेश्वर नामक जो लिंग है, उसका जो आदि या अंत खोज लेगा, वहीं प्रभु होगा! किन्तु दोनों को ही आदि या अंत दृष्टिगोचर नहीं हुआ। महादेव ने पार्वती से कहा- जिसे यह शिवलिंग दृष्टिगोचर होगा, वे मनुष्य लोक में धन्य हैं। उसे राजसूय यज्ञ का पुण्य प्राप्त होगा।

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