51/84 महादेव :श्री शूलेश्वर महादेव मंदिर

By AV NEWS

त्वन्नाम ये ग्रहीष्यन्ति सर्वा भयपीडि़ता:।।३४।।

व्याधिभि: पीडि़ता नित्यम दु:खैर्वा क्लेशिता भृशम्।

न भविष्यन्ति भीस्तेषां घोर संसारसागरे ।।३५।।

(अर्थात्- जो भय पीडि़त, व्याधि पीडि़त तथा अत्यंत कष्ट में पड़कर आपका नाम लेते हैं, वे निर्भय होकर संसार सागर से मुक्त हो जाते हैं।)

यह मंदिर ढाबा रोड के पीछे मुस्लिम बहुल क्षेत्र खटीकवाड़ा में स्थित है। इसका 5 फीट ऊंचा पुराने पाषाण के स्तंभों पर स्टील गेट युक्त प्रवेश द्वार है। प्राचीन सीढिय़ां उतरकर गर्भगृह में 18 इंच चौड़ी पीतल की जलाधारी पर नाग, 2 शंख, सूर्य व चंद्र उत्कीर्ण हैं तथा 5 फणवाला नाग लिंग पर शृंगारित है।2 फीट ऊंचा त्रिशूल व डमरू लगे हैं।

पूर्वाभिमुख नंदी की प्राचीन काले प्रस्तर की प्रतिमा जलाधारी के पास ही स्थापित है। दीवारों पर बाईं ओर कार्तिकेय, सामने शिव-पार्वती, दायें गणेश की प्रतिमाए स्थातिप हैं। मंदिर के पास भक्त अनिल कुमार चंदेल मंदिर सेवा कतरे दिखे। दोनों समय आरती नहीं हो पाती है, जबकि यह श्रावण मास है।

लिंग माहात्म्य की कथा- सर्वव्याधिनाशक शूलेश्वर लिंग की कथा सुनाते हुए महादेव ने देवी पार्वती से कहा कि आद्य कल्प में दैत्यों द्वारा देवताओं के परास्त होने के बाद अंधकासुर ने दूत भेजकर मुझसे तुम्हें मांगा तथा मंदराचल त्यागने को कहा। तब मैंने दूत के माध्यम से कहलाया कि वह मुझे युद्ध में पराजित कर तुम्हें जीत ले।

इस पर अंधक ने मेरे साथ घोर युद्ध किया। मैंने उसे मेरे शूल पर पिरोकर घुमाया तब उसके शरीर से गिरे रक्त से करोड़ों दानव वीर जन्म लेने लगे। तब ध्यानस्थ हो मैंने देवी रक्तदंतिका को उत्पन्न किया जो अंधक का रक्तपान करने लगी। तभी अंधक ने महादेव की भक्ति तथा शरण चाही। मैंने उस शूल को प्रसन्न होकर उत्तम स्थान देते हुए महाकाल वन भेजा तथा एक लिंग विशेष की आराधना करने को कहा। शूल ने उस लिंग से कहा कि मैं आपका दर्शन पाकर पवित्र हो गया हूं, आपके दर्शन से मानव श्रेय तथा स्वर्गफल लाभ करे, यही वर मांगता हूं। यह लिंग शूलेेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुआ।

फलश्रुति- जो मानव अष्टमी, चतुर्दशी एवं सोमवार को भक्ति के साथ इस लिंग की पूजा करेगा वह उदीयमान सूर्य के समान रत्नभूषित इच्छानुरूप गति से चलने वाले विमान में बैठकर स्वर्ग जाएगा।

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