यत्रसम्पूज्यतेलिंग तस्यिन्देशेशुभा: क्रिया:।।४३।।
न तत्र दुर्भिक्षभयं नापमृत्युभयं क्वचित।
प्रेतयोनौच् वैताला न नागा नच दंष्ट्रिणे:।।४४।।
(अर्थात, जहां यह लिंग पूजा की जाती है, वहां की क्रिया शुभ होती है तथा वहां दुर्भिक्षभय, अपमृत्युभय, प्रेतयोनि-वेताल-नागभय, दन्ती प्राणी का भय रुक ही नहीं सकता।)
यह महादेव मंदिर खटीकवाड़ा मुस्लिम बहुल क्षेत्र में स्थित है। पूर्व की ओर साढे चार फीट ऊंचा प्रवेश द्वार पुराने प्रस्तर स्तंभों का है जिस पर सरकने वाला लोहे का दरवाजा लगा है। करीब ८० वर्ग फीट आकार के गर्भगृह में १८ इंच चौड़ी उत्तरमुखी जलाधारी के मध्य ५ इंच ऊंचा लिंग प्रतिष्ठित है। जिस पर नागफण की छाया है। बांये से दीवारों पर मार्बल की गणेश, मध्य में सामने पार्वती तथा दांये भी पार्वती की ही प्रतिमाएं स्थापित हैं। बाहर नंदी की काले प्रस्तर की नंदी की छोटी मूर्ति विराजित है।
लिंग माहात्म्य की कथा- विश्व प्रसिद्ध विश्वेश्वर लिंग की कथा सुनाते हुए ईश्वर कहते हैं कि एक बार पूर्वकाल में विदर्भ नगरी में राजा विदूरथ के द्वारा आखेट में ब्रह्म ध्यान परायण एक विप्र का वध हो गया। राजा रौख नरख यातना भोगकर भीषण विषधर सर्वरूप में जन्मा। उसके द्वारा ब्राह्मण को दंश करने पर वह पुन: नरक में गया तथा सिंह योनि में जन्म लेकर एक राजा का भक्षण किया। फिर उसे कर्म विपाक से व्याघ्र, हाथी, मकर, पिशाच, ब्रह्म राक्षस, कुत्ता, श्रृगाल, गृध्र तथा ११वें जन्म में अवन्ति नगरी चांडाल योनि में जन्म लिया।
यहां भी एक ब्राह्मण के घर चोरी करने पर दंडित किया गया था। वहां एक लिंग विशेष का दर्शन करते-करते मृत होकर देवलोक जा पहुंचा। दर्शनों और प्रार्थना के प्रभाव से वह विश्वेश्वर नामक राजा हुआ। पूर्व जन्म की स्मृति के कारण उसने महाकालवन आकर इस दिव्य लिंग की आराधना की। भगवान महादेव ने प्रसन्न होकर इसे दिव्य गति प्रदान की। इस दिव्य लिंग की लोग प्रसिद्धि विश्वेश्वर नाम से हुई। राजा गणों द्वारा अलंकृत होकर विमान आरुढ़ होकर शिव लोक गए।
फलश्रुति- इसके दर्शन से मनुष्य सात जन्मों के मनसा-वाचा-कर्मणा कृत पापों से मुक्त हो जाते हैं। दर्शन से मानव कृतार्थ होता है तथा उसके दुर्भाग्य व अलक्ष्मी का नाश हो जाता है। उसे वांछित मानसी समृद्धि की प्राप्ति होती है।