60/84 महादेव : श्री मतङ्गेश्वर महादेव मंदिर

निर्मर्यादा निराचारा नि:शङ्काश्चातिलोलुपा:।
निर्घृणाक्रूरकर्मणो धृष्टा कलियुगे नरा:।
दर्शनातस्य लिङ्गस्य तेऽपि यान्ति त्रिविष्टम्।।४७।7

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(अर्थात्- मर्यादारहित, आचाररहित, नि:शंक, लालुप, क्रूरकर्मो दुष्टों को भी कलिकाल में इस लिंग के दर्शन मात्र से स्वर्ग प्राप्त होता है।)

लेखक – रमेश दीक्षित

यह मंदिर मिर्जा नईम बेग मार्ग के समानांतर वाले पिंजारवाड़ी मोहल्ले में स्थित है। इसका मुख्य तथा प्रवेश द्वार दक्षिणाभिमुखी है। मूल मंदिर के दक्षिण में करीब 200 वर्गफीट का टीनशेड का सभामंडप बना है। दाईं ओर बाहर यहीं गणेशजी की 3 फीट ऊंची सिंदूरचर्चित मूर्ति स्थापित है। प्रवेश द्वार ७ फीट ऊंचा लोहे का बना है जिसके अंदर उतरने पर करीब 50 वर्गफीट आकर के गर्भगृह में चौकोर पीतल की नाग आकृति से आवेष्ठित जलाधारी के मध्य दिव्य मतंगेश्वर लिंग प्रतिष्ठित है।

लिंग माहात्म्य की कथा:

द्वापर युग में सुमति नामक ब्राह्मण का एक दुर्दांत पुत्र था मतंग। उसने एक गर्दभ शिशु को आहत कर दिया तथा उस गर्दभी से पूछा कि तुमने मुझे कैसे चांडाल जाना। गर्दभी ने जब उसे एक नीच नाऊ का पुत्र बताया तो मतंग तप करने चला गया। इंद्र के हतोत्साहित करने पर भी उसने एक पैर पर खड़े रहकर एक हजार वर्ष पर्यंत तप किया। उसने पूछा मैं ब्राह्मणत्व क्यों नहीं पा सकता।

तब इंद्र ने प्रसन्न होकर उसे सिद्धेश्वर लिंग के पूर्व में एक दिव्य मूर्तिधारी लिंग के दर्शन कर विप्रत्व प्राप्त करने भेजा। वहां पहुंचकर मतंग ने अशेष फलप्रद लिंग का दर्शन किया। लिंग की परम कृपा से तब मतंग को ब्राह्मणत्व की प्राप्ति हुई। लिंग ने कहा मैं ही वर चाहने वालों के लिए वररूप हूं तथा मैं दुरात्मा गया को शापित करता हूं। मतंग को इस प्रकार दुर्लभ ब्राह्मण्य लाभ मिला।

फलश्रुति-

महादेव ने पार्वती से कहा कि जो विशुद्ध, महाभाग, ध्यान, मुक्तिकामी होने की इच्छा करे, वह मतंगेश्वर का कलिकाल में दर्शन करे। यह लिंग पापनाशक तािा अभिलषित कामनाप्रद है। हे देवी! जो इसका दर्शन करेगा, वह पृथ्वी पर पुण्य अर्जित कर स्वर्ग में अक्षय निवास करेगा।

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