61/84 महादेव : श्री सौभाग्येश्वर महादेव मंदिर

नापुत्रा नाधना नारी न दीनानचदु:खिता।
जायते दुर्भगा नैव सौभाग्येश्वर दर्शनात्।।५७।।

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नवैधण्यं नच व्याधिर्नाकालमरणं प्रिये।
नपुत्रीभर्तृजं दु:खं जायते लिङ्गदर्शनात।।५६।।

लेखक – रमेश दीक्षित

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(अर्थात्- जो नारी इस लिंग का दर्शन करती है, वह अपुत्रा, धनहीन, दीन, दु:खी तथा दुर्भाग्ययुक्त नहीं होती, उसे कभी वैधण्य, व्याधि अकाल मृत्यु तथा पुत्र-पति वियोगजनित दु:ख लिंग दर्शन के प्रभाव से नहीं होता।)

यह मंदिर श्री द्वारिकाधीश गोपाल मंदिर से पटनी बाजार की ओर जाते पहली दायें मुडऩे वाली गली में बायें घूमकर स्थित है। इसका शिल्प वैभव व इसमें विद्यमान विलक्षण मूर्तियां इसकी प्राचीनता की कहानी कह रही हैं। पुराने प्रस्तर स्तंभों व ऊपरी चौखट पर कतारबद्ध आकृतियों से शोभित इसके पश्चिमाभिमुखी प्रवेश द्वार से दो सीढिय़ा उतरकर करीब 65 वर्गफीट के गर्भगृह में करीब 4 फीट चौड़ी पीतल की जलाधारी के मध्य भूरे व हल्के लाल रंग का लिंग ५ फणवाली कलात्मक नाग आकृति से आवेष्ठित है। सवा दो फीट ऊंचा त्रिशूल गड़ा है।

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प्रवेश द्वार से उतरने पर बायें से श्याम वर्ण 6 इंच ऊंची गणेशजी की तथा सामने पार्वती की प्राचीन मूर्तियां स्थापित हैं। कार्तिकेय की मूर्ति नहीं है। तीन फीट व्यास का गोलाकार लिंग दर्शनीय है। सामने की दीवार पर पार्वती की मूर्ति के बायें एक कतार में गणेशजी की पांच मूर्तियां उल्लेखनीय हैं। बाहर नंदी की काले पाषाण की प्राचीन मूर्ति भी आकर्षक है।

लिंग की माहात्म्य कथा-

महादेव ने पार्वती को प्रथम प्राकृत कल्प में राजा की कीर्तिवर्धन व उनकी पत्नी मदनमंजरी की कथा सुनाई जो सुशील होकर भी पूर्व जन्मार्जित कर्म के कारण दुर्भगा थी। उसे देखते ही राजा अग्नि से दग्ध हो जाता। राजा ने उसे वन में भिजवा दिया, वह अपने यौवनयुक्त पति को प्राप्त करने की युक्ति सोचती रही। काम से आविष्ट होकर विलाप करते एक त्रिकालज्ञ मुनि से उसे देखा। उसने पति वियोग का कारण पूछा, मुनि ने उसे कहा कि पाणिग्रहण काल में उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ी थी। मुनि ने उसे महाकाल वन एक सौभाग्यप्रद लिंग के दर्शन हेतु भेजा।

पूर्व में इंद्राणी ने इसके दर्शन से परम सौभाग्य तथा नष्ट पति को प्राप्त किया था। लिंग का दर्शन करते ही उधर महर्षि जमदग्नि से राजा ने अपनी प्रिय पत्नी के बारे में पूछा, महर्षि ने कहा तुम्हारी पत्नी पवित्र चरित्रा व पतिव्रता है। राजा भी महाकाल वन पहुंचा तथा उसे महेश्वर की पूजा में तत्पर देखा। इस प्रकार दोनों का मिलन हुआ। वह लिंग सौभाग्येश्वर कहलाया।

फलश्रुति-

इस लिंग के दर्शन से कुल में कमी, दुर्भाग्य, दरिद्रता व बंधु वियोग नहीं होता। लिंगार्चन से पुत्र, पौत्र, स्त्री की प्राप्ति होती है। इसके दर्शन से व्यक्ति सर्वबाधारहित होकर सभी ऐश्वर्य की प्राप्ति करता है। उज्जैन में हरतालिका तीज पर सौभाग्य प्राप्ति हेतु इस मंदिर में पूजन-अर्चन के लिए लंबी कतार लगती है।

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