Advertisement

67/84 महादेव : श्री केदारेश्वर महादेव मंदिर

हिमद्रौहिमनाथस्ययात्राया: प्रव्यहंफलम्।।
लभन्तेचनरानित्यंनात्र कार्याविचारणा।।

(अर्थात्- हिमाद्रि स्थित हिमनाथ का दर्शन करने के लिए जाने पर जो फल मिलता है, मनुष्य उसे यहीं प्राप्त करे अर्थात् वहां नित्य दर्शन का जो फल है, उससे अधिक फल नहीं प्राप्त करे।)

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

Advertisement

यह मंदिर शिप्रा की पुराने पुल (रपट) के दायें मुड़कर धोबी घाट पर स्थित दिखाई देता है। गर्भगृह में प्रवेश करने पर दायीं ओर करीब 9 वर्गफीट की खोह में श्री पृथुकेश्वर महादेव लिंग (49) स्थित है, जबकि केदारेश्वर का गर्भगृह करीब एक सौ वर्गफीट विस्तृत है। यहां यद्यपि तीन शिवलिंग प्रतिष्ठित हैं, पहले उत्तरमुखी पीतल की जलाधारी में अन्य 74 महादेव के लिंगों से सर्वथा भिन्न आकृति में केदारेश्वर एक पिण्ड की आकृति में विराजमान हैं, जो एक तरफ छोटी है तथा दूसरी तरफ बड़ी है।

यह पिण्डवत् लिंग दर्शनार्थी को उत्तराखंड के केदारनाथ धाम की झलक व स्मृति दिलाती है। जलाधारी पर सूर्य, चंद्र, दो शंख तथा लिंग की ओर गमन करते हुए 2 सर्पाकृतियां बनी हुई हैं। इसके पास दो अन्य पाषाण की जलाधारी में प्रतिष्ठित समानांतर लिंग भी हैं।

Advertisement

उत्तराभिमुखी प्रवेश द्वार में जाने पर बायें से दीवारों के ताक में काले पाषण की अति प्राचीन देवी पार्वती, सम्मुख गणेश तथा एक शिवलिंग के साथ कार्तिकेय और दायें 2 फीट ऊंची सिंदूरचर्चित मूर्ति है। मंदिर की भीतरी दीवारों उसके अति प्राचीन होने का स्वत: प्रमाण है। यहां न लिंग को आवृत्त किए है, न त्रिशूल है, न डमरू। सम्मुख वाहन नंदी विराजित है।

लिंग माहात्म्य की कथा-

एक बार जब देवगण हिमाभिषिक्त हो गए तो विधाता ने सहायता न कर पाते हुए उन्हें शंकर के पास जाने का कहा। फिर सभी कैलास पहुंचे तथा महादेव का पूजन व स्तवन किया। तदनंतर महादेव ने हिमालय की मर्यादा का निर्धारण किया तथा त्रैलोक्य प्रसिद्ध केदारेश्वर नाम से प्रसिद्धि प्राप्त कर लिंगमूर्ति रूप में वहां निवास करने लगे। जब असंख्य लोग उनके दर्शन के लिए वहां आने लगे तो हिमालय पर धूल और हिमकणों से अंधकार छाने लगा। इससे दु:खी होकर महादेव ने भैंसे का रूप धारण कर लिया।

Advertisement

जब दर्शनार्थी महादेव के दर्शन न कर पाने से दु:खी हो गए तभी एक आकाशवाणी हुई कि हिमालय पर बारहों महीने केदारेश्वर हैं किंतु वे अब आठ महीनों तक दिखाई नहीं देंगे। अत: उनका यदि बारहों मास पूजन-अर्चन करना हो तो वे सोमतीर्थके निकट विद्यमान केदारेश्वर शिवलिंग के रूप में उनकी आराधना कर सकते हैं। वे दर्शन मात्र से देव दुर्लभ वर प्रदान करते हैं। उपर्युक्त कथा जो महाकाल वन स्थित केदारेश्वर महादेव मंदिर के अत्यंत महनीय होने की गौरव गाथा को रेखांकित करती है। स्वयं महादेवजी द्वारा देवी पार्वती को सुनाई गई है।

फलश्रुति-

देवगण ने महेश्वर से प्रार्थना की कि जो मनुष्य भक्तिपूर्वक आपका दर्शन करे उसे सर्वाधिक फल दीजिये। ब्रह्मघाती, मद्यप, चोर, गुरु पत्नीगामी का जो पा फल है, वह आपके दर्शन मात्र से नष्ट हो जाए। सौ चांद्रायण व्रतों का उसे फल मिले। महादेव ने देवगण को तथास्तु कहा।

लेखक – रमेश दीक्षित

Related Articles