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74/84 महादेव: श्री राजस्थलेश्वर महादेव मंदिर

दृष्टवा राजस्थले देवं योऽत्रयात्रांकरिष्यति।
तस्य श्रीर्विजयश्चैवभवत्येव वरोमम।
शत्रव: सड्क्षयं यान्तु सम्पद्यन्तां मनोरथा:।।

(अर्थात्- जो मानव राजस्थल में देवदर्शन तथा यात्राविधान करे, उसे श्री तथा विजय लाभ हो। आपके दर्शन करनेवाले का पापक्षय होगा। वह मनोरथ सिद्धि, श्रीवृद्धि तथा वंश विस्तार प्राप्त करेगा।)
यह मंदिर नगर की सघन बस्ती भागसीपुरा में मुख्य मार्ग पर आनन्द भैरव की गली में बाईं ओर स्थित है। इसका पूर्वाभिमुखी साढ़े पांच फीट ऊंचा प्राचीन प्रस्तर स्तंभों से निर्मित प्रवेशद्वार तेलचित्रित होने से अन्य मंदिरों से भिन्न दिखाई देता है।
स्तंभ और चौखट कलांकित हैं, ऊपर केन्द्र में गणेश की मूर्ति विराजित है, वहीं बृहदाकार घण्टा निनादित होता रहता है। गर्भगृह में करीब साढ़े तीन फीट चौड़ी चौकोर पीतल की दो कोनों पर शंख व नीचे के दो कोनों पर सूर्य-चंद्र तथा मध्य में पुष्प व पत्तों की मनोरम आकृतियों से शोभित जलाधारी दक्षिणमुखी है।
मध्य में करीब 3 फीट परिधि का डेढ़ फीट ऊंचा वृहदाकार नागवेष्ठित लिंग सुप्रतिष्ठित है। तीन फीट ऊंचा त्रिशूल डमरूयुक्त गड़ा है। प्रवेश पर बाएं नहीं सामने दीवार पर गणेशजी की दायीं ओर घूमी हुई सूंड वाली जबकि बाईं ओर देवी पार्वती की 2 फीट ऊंची श्यामवर्ण दोनों पाषाण मूर्तियां दर्शनीय हैं एवं स्पर्शनीयता जाग्रत करती हैं। गर्भगृह के फर्श व नीचे की आधी दीवारें संगमरमर की हैं जबकि ऊपर टाइल्स लगे हैं। दस इंच ऊंचे आसन पर पश्चिमाभिमुखी नंदी विराजित हैं।

लिंग की माहात्म्य कथा- पूर्व विष्णुकल्प के मन्वंतर के आरंभ में पृथिवी पर अराजक स्थिति के मध्य राजा रिपुंजय को तप करते देख ब्रह्मा ने उसे परोपकार करते हुए लोकधर्म पालन करने का कहा। राजा ने उसे अवंतिपुरी भेजने को कहा तथा देवनाथ से प्रसिद्धि पाने का वर दिया। राजा ने वहां निवासरत देवताओं को स्वर्ग भेज दिया।

उसके राज्य में पृथ्वी स्वयं देवलोक के समान हो गई। इससे देवगण क्रोधित होकर प्रजाओं के प्रति अत्याचार करने लगे, इंद्र ने अनावृष्टि कर दी। जब राजा रिपुंजय ने आकाश से उत्तम वृष्टि कर दी तो इंद्र ने अतिवृष्टि कर दी।
महादेव देवी पार्वती से कहते हैं कि इसी समय मैं तुम्हारे साथ अपनी नगरी (अवंतिका) का दर्शन करने गया। मेरे साथ कई देवता, किन्नर, सर्प, गंधर्व, सिद्ध, पवित्र नदियां, पर्वत, तीर्थ, चारों वेद तथा अप्सरायें भी आई थीं। मैं देवगण के साथ यहीं निवास करने लगा, तब राजा रिपुंजय ने आकर मुझे प्रणाम किया तथा मेरी शरणागत हो गया।
राजा के स्तव से महादेव प्रसन्न हो गए। राजा ने उनके प्रति दृढ़ भक्ति का वर मांगा तथा प्रार्थना की कि यह स्थान आपको अत्यन्त प्रिय है, अत: आप यहां राजस्थलेश्वर लिंगरूपेण प्रसिद्ध हो जाएं जो मनुष्य पुराणोक्त विधान से आपकी यात्रा सम्पन्न करे आप उसे वांछित फल तथा सिद्धियाँ प्रदान करें।

फलश्रुति-राजस्थलेश्वर महालिंग के दर्शन से मनुष्य सर्वपापरहित हो जाता है। जो मनुष्य इसके दर्शन करेगा उसका पापक्षय होगा। वह मनोरथ सिद्धि, श्रीवृद्धि तथा वंश विस्तार प्राप्त करेगा।

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