75/84 महादेव:श्री बड़लेश्वर महादेव मंदिर

भविष्यति त्रिलोकेषु विख्यातोनेत्रदायक:।

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पूजयिष्यन्तियेदेवं वडलेश्वरसंज्ञकम।

लिंगलोकेषुविख्यातंतेप्राप्स्यन्तिमनोरथम।

(अर्थात्- इनके दर्शनमात्र से मानव को नेत्र लाभ होता है। जो इन देव की पूजा करेंगे वे त्रैलोक्य प्रसिद्ध होकर अपने मनोरथ की प्राप्ति करेंगे।) यह मंदिर भैरवगढ़ क्षेत्र में श्री सिद्धनाथ भगवान् की मूर्ति के सम्मुख एक प्राचीन स्थल पर स्थित है। प्राचीन स्तंभों पर निर्मित इसका पूर्वाभिमुखी प्रवेश द्वार 5 फीट ऊंचा है जिस पर स्टील पाइप का बाहरी तथा लोहे का भीतरी द्वार लगा है।

करीब ढाई फीट चौड़ी पीतल की जलाधारी पर कलात्मक नाग की आकृति उत्कीर्णित है जो बड़लेश्वर लिंग को आवेष्ठित किये हुए है। गर्भगृह में प्रवेश करने पर हमारे बाईं ओर से प्रथम गणेशजी, सम्मुख पार्वतीजी और दायें ताक में कार्तिकेय की मूर्तियां स्थापित हैं। गणेश व पार्वती की मूर्तियां श्यामवर्ण की प्राचीन हैं, जबकि कार्तिकेय की संगमरमर की बनी है। बाहर पुराने 2 गोलाकर स्तम्भों पर निर्मित करीब 200 वर्गफीट के सभामंडप में 1 फीट ऊंचे व सवा फीट लंबे नंदी की काले पाषाण की मूर्ति स्थापित है।

लिंग माहात्म्य की कथा- कुबेर के सखा मणिभद्र का पुत्र बड़ल एक बार कुबेर के महल के निकट उद्यान की रम्यता से उत्तेजित एवं कामवासना से युक्त होकर पत्नी के साथ रमणरत हो गया। उसे प्रहरियों ने पत्नी के साथ विचरण करने का मना किया किन्तु बाहुबली और विद्याबली बड़ल के असहनीय तेज के कारण वे पलायन कर गये। तदनन्तर बड़ल कामवेग से तप्त होकर वहां की पुष्करिणी में क्रीड़ा करने लगा।

जब मणिभद्र को यह वृतान्त ज्ञात हुआ तो उसने पुत्र बड़ल को सर्वभोग रहित, पंगु, अन्ध, वधिर, दीन तथा क्षयग्रस्त होने का शाप दे डाला। ऐसा मणिभद्र ने स्वामिभक्ति के कारण किया। जब पिता ने पुत्र को दु:खी देखा तब उसने उसे एक उपाय बताया।

वह पुत्र को लेकर स्कन्दपुराण की सुनी हुई कथा के आधार पर महाकालवन आया तथा उसे एक महालिंग के पास लाया। उसके स्पर्श मात्र से उसकी सभी दैहिक शक्तियां लौट आईं। पिता मणिभद्र ने यह आश्चर्य देखकर पुत्र के नाम पर उस महालिंग का नाम बड़लेश्वर रख दिया तथा इसी नाम से यह प्रसिद्ध हुआ।

फलश्रुति- इस बड़लेश्वर लिंग का दर्शन करना पापहारी है तथा स्पर्श करना राज्यप्रद है, इसकी अर्चना करना मोक्षप्रद है। प्रयाग, प्रभास व गंगासागर संगम में तप करने से जो पुण्यफल मिलता है, वही इस लिंग के दर्शन से प्राप्त होता है।

लेखक – रमेश दीक्षित

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