78/84 महादेव : श्री अविमुक्तेश्वर महादेव मंदिर

श्री पुष्पदंतेश्वर महादेव मंदिरजन्ममृत्युभयं हित्वा स याति परमां गतिम।
य:पूजयति भावेन ह्याविमुक्तेश्वरं शिवम।
ब््राह्महाऽपि च यो गच्छेदविमुक्तेश्वर यजेत।
तस्य लिंगस्य माहात्म्यात्सर्वपापान्र्विश्रते।।

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(अर्थात्- जो मानव इस लिंग की पूजा करते है, वे जन्म-मृत्यु रहित होकर परमपद लाभ करते हैं। यदि ब्रह्मघाती भी यहां दर्शन करता है, तब लिंग माहात्म्य के कारण वह सर्वपापरहित हो जाता है।)

यह मंदिर नगर के पुराने सघन क्षेत्र सिंहपुरी में आताल-पाताल भैरव एवं कुटुम्बेश्वर महादेव मंदिरों के मध्य व्यासजी के बाड़े में स्थित है। पुराने प्रस्तर स्तम्भों से युक्त इसके पूर्वाभिमुखी साढ़े चार फीट ऊंचे प्रवेश द्वार पर लोहे का द्वार लगा है। इससे चार सीढ़ी नीचे उतरकर करीब ढाई फीट चौड़ी पीतल की जलाधारी आकार में चौकोर है जिस पर 2 शंख, सूर्य-चंद्र तथा स्वस्तिक चिह्न व ऊं आकृति उकेरी हुई है।

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इसके मध्य काले पाषाण का एक फीट ऊंचा लिंग नाग आकृति से आवेष्ठित है। गर्भगृह में प्रवेश द्वार पर हमारे बाएं से ताक में गणेश, सम्मुख पार्वती तथा दाईं ओर शिव-पार्वती की प्राचीन मूर्ति स्थापित हैं। फर्श व दीवार के चौथे भाग पर संगमरमर जड़ा है।

लिंग माहात्म्य की कथा– शाकल नगर में राजा चित्रसेन अपनी रूपयौवन सम्पन्ना रानी चंद्रप्रभा तथा लावण्यमती युवा पुत्री के साथ राज्य करता था। कन्या को पूर्वजन्म की स्मृति थी। राजा उसके विवाह की सोचने लगा, किंतु पुत्री ने अपने जन्मांतर का वृश्रान्त सुनाया। वह एक ब्राह्मण हरस्वामी की सुभगा भार्या थी किंतु वह उसे नहीं चाहते थे, न किसी अन्य स्त्री को ही। वे सदाचारी थे।

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पति को वशीभूत करने के लिए मैंने परित्यक्ता स्त्रियों के कहने पर उसे मन्त्रपूत चूर्ण मिश्रित दुग्ध पान कराया, वैसे ही वह कांपते हुए कहने लगा मैं तुम्हारा दास हूं, मेरी रक्षा करो। तब से वह वश में हो गया किंतु समय आने पर मेरी मृत्यु हो गई तथा मुझे नरक यातना भोगने के उपरान्त उस चाण्डाल के घर जन्म लेना पड़ा।

तदनन्तर वह महाकालवन पहुंची तथा एक लिंग विशेष के दर्शन करने से दिव्य विमान में बैठकर इन्द्रपुर गई। फिर मैंने शाकलपुर में आपकी पुत्री के रूप में जन्म लिया है। पुन: लिंग दर्शन हेतु वह पिता सहित महाकाल वन आई, लिंग दर्शन कर वह उसी लिंग में लयीभूत हो गई। राजा को भी पुत्र प्राप्ति हुई। राजा ने लिंग का नाम अविमुक्तेश्वर रखा जो लोक में इसी नाम से प्रसिद्ध हुआ।

फलश्रुति- जो बुद्धिमान मनुष्य अविमुक्तेश्वर का दर्शन करता है, उसकी मुक्ति निश्चित है। सभी प्रकार के यज्ञ तथा ब्रह्मचर्यानुष्ठान का जो फल है, इस लिंग दर्शन के ही तुल्य है। शाठ्य या पापी भी इस लिंग के दर्शन द्वारा जन्म-मृत्यु-जरा रहित पद की प्राप्ति करता है।

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