8/84 महादेव : श्री कपालेश्वर महादेव मंदिर

By AV NEWS

यस्य दर्शनमात्रेण ब्रह्महत्या प्रणश्यति।।

लेखक – रमेश दीक्षित

यह मंदिर चक्रतीर्थ मार्ग के सामने वाली घाटी पर चढ़कर बांई ओर से दानीगेट मार्ग के मोड़ के भी पहले छोटी सी गली में दांई ओर स्थित है। करीब 40 वर्गफीट के छोटे गर्भगृह में काले पत्थर की गोलाकार शिला पर केवल दो-ढाई इंच ऊंचा कपालेश्वर शिवलिंग स्थापित है जिसके तीनों ओर संगमरमर की डेढ़ इंच ऊंची बार्डर बनी है

जिससे लिंग पर चढऩे वाले जल की रुकावट हो तथा वह उत्तरमुखी जलाधारी की ओर जा सके। मंदिर के दाएं ताक में एक पुरातन कलात्मक स्तंभ था 2 फीट ऊंचा भग्नावशेष रखा है। जिस पर कुछ देव प्रतिमाएं निर्मित हैं। मध्य में पार्वती और बांई ओर गणेशजी की प्रतिमा है। बाहर संगमरमर की नंदी प्रतिमा स्थापित है।

श्रीरुद्र ने कपालेश्वर लिंग की कथा सुनाते हुए कहा कि एक बार ब्रह्मा के यज्ञ में वे कपालिक वेश में पहुंचे। वहां ब्राह्मणों ने ”मुझे पाप, पाप, हट, हट” कहकर तिरस्कृत किया। रूद्र ने कहा मैं 12 वर्ष के व्रत के अंतर्गत प्रायश्चित कर रहा हूं। फिर भी यज्ञनिष्ठ ब्राह्मणगण नहीं माने तथा कहा ”तुम पापी, ब्रह्म हत्यारे हो।

“फिर जब मैं भोजन करने बैठा तो मुझ पर ब्राह्मणों ने प्रहार कर दिया। तब मैंने उस वेदी पर कपाल फेंका व अन्तर्धान हो गया। जब उन्होंने कपाल को वेदी से बाहर फेंका तो असंख्य कपाल उत्पन्न होने लगे। ब्राह्मणों ने सोचा कि यह चंद्राद्र्धशेख्शर महादेव ही हो सकते हैं तब उन्होंने मेरा स्तव किया। मैंने प्रसन्न होकर उन पर दया की तथा उन्हें वर दिया किंतु महादेव ने उन्हें ब्रह्मा के पंचम सिर के काटने पर स्वयं पर भी ब्रह्म हत्या की कथा सुनाई।

तब देवप्राणी ने महाकालवन मेें एक शिवलिंग की बात सुनाई। महादेव ने सभी ब्राह्मणों को कपालेश्वर की पूजा-अर्चना था महत्व समझाया। इसका वे विप्रगण कपालों के ढेर के नीचे कपालेश्वर लिंग के दर्शन कर ब्रह्म हत्या से मुक्त हो गए।

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