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11/84 महादेव :  श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर

वीरभद्रसमीपे तू सर्वसिद्धिप्रदायकम्।

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लेखक – रमेश दीक्षित

भैरवगढ़ क्षेत्र में सिद्धवट मंदिर परिसर में बांई ओर पूर्वाभिमुख प्रवेश द्वार के भीतर तीनों ओर प्राचीन काले पत्थरों की दीवारों के मध्य करीब एक सौ वर्गफीट के गर्भगृह में मध्य में गोलाकार ढाई फीट व्यास के ऊपर से समतल सिद्धेश्वर शिवलिंग प्रतिष्ठित है।

इस पर पांच फन वाले नाग छाया किए हैं तथा ३ फीट चौड़ाई की चौकोर जलाधारी उत्तर की ओर जल निकासी किए स्थित है। गर्भगृह में दांई ओर गणेश एवं पार्वती की एक साथ प्रतिमाएं हैं व मध्य में कार्तिक हैं। त्रिशूल व डमरू हैं तथा ८ पुराने काले स्तंभों के बीच पाषाण के नंदी विराजित हैं।

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उद्भव की कथा-

महादेवजी ने पार्वती को इस शिवलिंग का माहातम्य सुनाते हुए कहा कि पूर्व में देवदारूवन में विप्रगण ने सिद्धिलाभार्थ स्पर्धा कर योग प्रारंभ किया तथा विभिन्न आहार, तप:श्चरण आसन से तप किया पर सौ वर्षों के बाद भी सिद्धि नहीं मिली।

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निराश होकर वे नास्तिक हो गए। तब अशरीरी वाणी ने कहा कि तुम्हें वासनारहित, श्रद्धावान, आस्तिक होने पर ही सिद्धि मिलेगी इसलिए तुम महाकालवन जाओ तथा सिद्धिप्रद सिद्धेश्वर शिवलिंग की आराधना करो।

इस महाकालवन में यहां आकर सनकादि, राजा वसुमान्, महात्मा हैहय तथा कार्तिवीर्य सिद्धियां पा चुके हैं। आकाशवाणी सुनकर विप्रगण यहां आए तथा सर्वसिद्धेश्वर लिंग के दर्शन कर सिद्धि प्राप्त की।

फलश्रुति-

इसके दर्शन से महापातकी को भी सिद्धि तथा ज्ञानरूपी ऐश्वर्य का लाभ होता है। नित्य दर्शन से ६ मास में मनोकामना पूर्ति मिलती है। अष्टमी एवं कृष्णा पक्ष चतुर्दशी को विशेष फल मिलता है। इस लिंग के पूजक अपुत्र को पुत्र, निर्धन को धन, विद्यार्थी को विद्या, भार्यार्थी को भार्या प्राप्त होती है। संक्रांति, सोमवार व ग्रहण के दिन दर्शन करने से स्वयं के साथ सौ पीढिय़ों का उद्धार कर लेता है।

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