लेखक – रमेश दीक्षित
यह मंदिर शिप्रा की छोटी रपट से रामघाट की ओर जाते हुए गंधर्व घाट पर 7 फीट ऊंचे प्लेटफॉर्म बाईं ओर स्थित है। मंदिर का प्रवेश द्वार काले पत्थर का 5 फीट ऊंचा है जिसके अंदर एक और स्टील का द्वार है। ऊपर गणेश विराजित हैं। 3 फीट चौड़ी जलाधारी के मध्य 9 इंच ऊंचा काले पत्थर का शिवलिंग पीतल नाग से आवेष्टित है जिस पर 2 शंख, चंद्र व सूर्य उत्कीर्ण हैं।
प्रवेश पर बाईं ओर काले पत्थर की प्राचीन मूर्ति, मध्य में पार्वती व दाएं गणेशजी ताक में प्रतिष्ठित हैं। फर्श व नीचे की आधी दीवार संगमरमर से जड़ी है, जबकि ऊपरी आधा भाग काले पत्थर के निर्माण से प्राचीनता दर्शा रहा है। गर्भगृह करीब 65 वर्गफीट आकार का है।
माहात्म्य की कथा-
राजा कौशिक रात्रिकाल में कुक्कुट (मुर्गा) व दिन में पुरुष हो जाते व पृथ्वी का निष्कंटक भोग करते। उनकी 64 कलायुता रानी उन्हें बड़ी प्रिय थीं किंतु राजा के साथ उसका रतिकार्य कभी नहीं हुआ। एक बार उसने एक कीड़े के जोड़े को देखा किंतु कीड़े ने उस कीट कामिनी को कभी प्रसन्न नहीं किया था। एक बार कीटनायक के अनुनयपूर्ण कथन पर कीट कामिनी उसके प्रति अनुरक्त हो गई।
राजा कौशिक की पत्नी एक बार गालव ऋषि के आश्रम गई तथा दृढ़व्रती तपोयोनि गालव से अपने पति के अनासक्त भाव के संबंध में प्रश्न किया। ऋषि ने कहा कि विदूरथ राजा के पुत्र ही तुम्हारे पति हैं जो मुर्गें के मांस में अत्यंत रूचि रखते व दोषरत थे। मुर्गों का राजा ताम्रचूड़ ने क्रोधित होकर राजपुत्र कौशिक को भयावह क्षय रोग होने का शाप दिया।
एक बार वह महर्षि वामदेव के आश्रम गया व शरीर क्षीण होने का कारण पूछा। महर्षि ने उसे कुक्कुटराज के पास भेजा, उसने राजपुत्र को दिन में पुरुष व रात में मुर्गा बनकर रोग रहित होने का वरदान दिया। अंत में महर्षि गालव ने उसे पक्षियोनिविमोचन तीर्थ भेजा। राजा रानी के साथ महाकाल वन पहुंचा जहां वह उस तीर्थ के दर्शन कर दिव्यरूपधारी मनोहर पुरुष बन गया।
फलश्रुति-
इस कुक्कुटेश्वर लिंग के दर्शन से मनुष्य को नरक प्राप्ति, दु:ख, भय, अकाल मृत्यु भय नहीं होता। उसे पशु योनि से मुक्ति मिल जाती है।