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25/84 महादेव : श्री मुक्तिश्वर महादेव मंदिर

यस्य दर्शनमात्रेण मुक्तिर्भवति पार्वती।।

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लेखक – रमेश दीक्षित

खत्रीवाड़ा क्षेत्र की भीतरी गलियों में मुक्तिश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। प्रवेश द्वार साढ़े पांच फीट ऊंचा है, भीतर लोहे का द्वार है। करीब 50 वर्गफीट आकार के गर्भगृह में 30 इंच चौड़ी जलाधारी के मध्य करीब 6 इंच ऊंचा श्याम वर्ण शिवलिंग लंबे नाग की कलापूर्ण आकृति में आवेष्टित है। पीतल की जलाधारी की ऊपरी परत पर फूल-पत्तियों की कलात्मक संरचना उत्कीर्ण है। समीप ही त्रिशूल हैं।

गर्भगृह का फर्श व निचली आधी दीवारें संगमरमर से जड़ी हैं। 3 फीट ऊंचा त्रिशूल गड़ा है। बाएं से ताक में गणेश सम्मुख पार्वती की सिंदूर चर्चित व दायें कार्तिकस्वामी की संगमरमर की मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। बाहर संगमरमर की आसंदी पर नंदीगण विराजमान हैं। सभामंडप नहीं है।

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शिवलिंग के माहात्म्य की कथा:-

महादेव ने पार्वती को रथांतर कल्प में मुक्ति नामक विप्रप्रवर ने महाकालवन में महाकाल के निकट स्थित मुक्तिलिंग का 13 वर्ष तक तप किया। उसे एक भीषण धनुषधारी व्याध दिख पड़ा। उसे कहा मैं तुम्हारे इस वल्कल के लिए तुम्हारा वध करूंगा। किंतु ब्राह्मणों में नारायण की प्रभा देखकर उस व्याध ने भी मुक्तिलिंगेश्वर के दर्शन किए। जिससे वह व्याध उसमें लयीभूत हो गया।

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यह देखकर ब्राह्मण स्तब्ध रह गया तथा वह जल में विपुल तप करने लगा। इसी प्रकार एक और व्याध उसे मारने आया, किंतु नमो नारायणाय मंत्र सुनकर वह भी शापमुक्त होकर विष्णुलोक पहुंच गया। उसने मुनि से कहा कि मैं ब्राह्मणों के तेज को जानता हूं।

व्याध से मुनिवर से कहा मैं आपकी शरणागत हूं, मुझे क्षमा करें। उसने मुनिवर के मंत्र से मुक्त होने के वरदान की कथा उन्हें सुनाई। उस ब्राह्मण ने व्याध से ही मुक्ति का साधन जानना चाहा। उस दिव्य पुरुष ने ब्राह्मण को गुहय मुक्तिलक्षण बताते हुए कहा कि महाकालवन में मुक्तिश्वरलिंग की बात सुनने से ही आपको व मुझे दोनों को मुक्ति मिलेगा। दोनों मुक्त होकर मुक्तेश्वर लिंग पहुंचे तथा लिंग दर्शन करते ही उसी में लीन हो गए।

फलश्रुति:-

जो मुनष्य भक्तिभाव से इस लिंग की अर्चना करते हैं व पापमुक्त होकर परम गति पाते हैं।

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