यस्य दर्शनमात्रेण निष्कलङ्कोनरो भवेत्।।
लेखक – रमेश दीक्षित
यह मंदिर दानी दरवाजे से चक्रतीर्थ की ओर जाने वाले मार्ग पर दाईं ओर स्थित है। इसके आसपास चौरासी में गिने जाने वाले 3 और महादेव मंदिर हैं। मंदिर में बाहर ही दाईं ओर एक 2 फीट ऊंची विष्णु के दशावतारों की प्राचीन प्रतिमा है। अपेक्षाकृत इस मंदिर में प्रतिष्ठित शिवलिंग बड़ा है
जो करीब 15 इंच ऊंचा होकर काले पत्थर की ही जलाधारी में स्थापित है, ऊपर से वृत्ताकार है। प्रवेश द्वार काले पाषाण का है जो प्राचीनता दर्शाता है। गर्भगृह में बाईं ओर विष्णु, सम्मुख पार्वती व ताक में गणेश की सिंदूरचर्चित मूर्ति हैं। बाहर नंदी विराजित है किंतु उनका आधा शरीर फर्श में गड़ा है।
शिवलिंग की माहात्म्य कथा:-
महादेव ने पार्वती को कथा सुनाई कि एक बार दक्ष और चंद्र (सोम) ने परस्पर एक-दूसरे को शाप दे डाले। तब देवगण ब्रह्मा के पास और फिर ब्रह्मा को साथ लेकर जर्नादन के पास पहुंचे तथा उनका स्तव करने लगे। देवताओं ने चंद्र के अंतर्हित होने की बात कही।
विष्णु ने सोम का स्मरण किया फिर भी जब वह नहीं आया तो उन्होंने क्रोधित होकर ब्रह्मा से कहा- देवता तथा असुर मिलकर समुद्र मंथन करें। तब सोम प्रादुर्भूत हुए तथा विष्णु के कहने पर प्रजापालन आरंभ कर दिया। इस प्रकार ब्रह्मा द्वारा सृजित पहला चंद्र नवीन शशि द्वारा पीडि़त होने लगा। तब विष्णु ने सोम को महाकालवन भेजकर इस कांतिकर लिंग की आराधना करने को कहा।
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यस्य दर्शनमात्रेण निष्कलङ्कोनरो भवेत्।।लेखक – रमेश दीक्षितयह मंदिर दानी दरवाजे से चक्रतीर्थ की ओर जाने वाले मार्ग पर दाईं ओर स्थित है। इसके आसपास चौरासी में गिने जाने वाले 3 और महादेव मंदिर हैं। मंदिर में बाहर ही दाईं ओर एक 2 फीट ऊंची विष्णु के दशावतारों की प्राचीन प्रतिमा है। अपेक्षाकृत इस मंदिर में प्रतिष्ठित शिवलिंग बड़ा हैजो करीब 15 इंच ऊंचा होकर काले पत्थर की ही जलाधारी में स्थापित है, ऊपर से वृत्ताकार है। प्रवेश द्वार काले पाषाण का है जो प्राचीनता दर्शाता है। गर्भगृह में बाईं ओर विष्णु, सम्मुख पार्वती व ताक में गणेश की सिंदूरचर्चित मूर्ति हैं। बाहर नंदी विराजित है किंतु उनका आधा शरीर फर्श में गड़ा है।शिवलिंग की माहात्म्य कथा:-महादेव ने पार्वती को कथा सुनाई कि एक बार दक्ष और चंद्र (सोम) ने परस्पर एक-दूसरे को शाप दे डाले। तब देवगण ब्रह्मा के पास और फिर ब्रह्मा को साथ लेकर जर्नादन के पास पहुंचे तथा उनका स्तव करने लगे। देवताओं ने चंद्र के अंतर्हित होने की बात कही।फलश्रुति:-जो मनुष्य सोमेश्वर की आराधना करते हैं, वे पवित्र होकर मुझ में लीन हो जाते हैं। ये कुष्ठरोग नाशक हैं। वह अपने कुल को अलंकृत करने वाला होता है।
तब सोम ने महाकालवन जाकर लिंग दर्शन के पश्चात एक स्तोत्र से उस लिंग का स्तव किया। इससे लिंग रूपी महादेव ने सोम से अपनी इच्छा पूछी। सोम ने कहा- आप मुझे कांति, मूर्ति तथा रूप प्रदान कीजिए। लिंग ने तथास्तु कहा।इस प्रकार वर पाकर द्विजराज चंद्र तत्क्षण निशानाथ हो गए। महादेव ने पार्वती से कहा कि सोम की आराधना के कारण यह लिंग सोमेश्वर कहा गया।