33/84 महादेव : श्री आनंदेश्वर महादेव मंदिर

येषांक्षीणंनृणां पापं कोटि जन्मशतोद्धवम्।
तेषां भावति साभक्तिरानन्देश्वर दर्शनात।।

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लेखक – रमेश दीक्षित

(अर्थात् जो मनुष्य कोटि जन्मों में अर्जित पापों से युक्त है आनंदेश्वर के दर्शन से पाप क्षीण होकर वे भक्तिपूर्ण हो जाते हैं।)

नगर क्षेत्र के एकमात्र श्मशान चक्रतीर्थ मार्ग पर घाटी चढऩे के उपरांत कुछ दूरी पर एक आनंद आश्रम है। उसी के भीतर यह मंदिर स्थित है। इसका पूर्वाभिमुख प्रवेश द्वार के भीतर गर्भगृह में कोई 2 फीट चौड़ी पीतल की जलाधारी के मध्य करीब 4 इंच ऊंचा आनंदेश्वर लिंग प्रतिष्ठित है जिसके पास ही वाहन नंदी जो काले पत्थर का होकर अत्यंत कलात्मक है, गर्भगृह के सामने भी प्रतिष्ठित है। यहां न त्रिशूल है, न लिंग पर नाग आवेष्ठित हैं, न डमरू है।

महादेव ने देवी पार्वती के रथंतर कल्प के राजा अनमित्र की कथा सुनाई जो धार्मिक, महात्मा, पराक्रम का धनी था। पर्वतपुत्री गिरिभद्रा उसकी प्राणप्रिय रानी थी। जब उसे पुत्र हुआ तो वह जातिस्मर (पूर्व जन्म की स्मृति वाला) था। पूछने पर उसने कहा सभी स्वार्थ ही चाहते हैं, मैं तुम्हारा उपकार नहीं कर सकूंगा। मां ने पुत्र को सूतिकागृह में त्याग दिया, उसका हरण जातिसार ने करके उसे राजा विक्रांत की पत्नी हैमिनी की शय्या पर रख दिया।

जबकि ब्राह्मण के पुत्र को उस राक्षसी ने हर लिया। विक्रांत के यहां स्थित अनमित्र के पुत्र का नाम आनंद तथा ब्राह्मण बोध के यहां पल रहे विक्रांत के पुत्र चैत्रस्थ को जब अपने जाति गौरव और वंश की स्मृति आई तब उन्होंने महाकाल वन स्थित इस दिव्य शिवलिंग की उपासना की जिसमें उनके पूर्व जन्मों के पाप तो नष्ट हुए ही, वे अपने-अपने वंश में जाकर प्रबल प्रतापी और भक्त सिद्ध हुुए। राज पुत्र आनंद के द्वारा पूजित होने के कारणयह आनंदेश्वर लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

फलश्रुति-

जो आनंदेश्वर के दर्शन करता है वह पुत्र-पौत्र समन्वित होता है, उसके पाप क्षीण होकर भक्तिपूर्ण हो जाते हैं। वह जन्म-मृत्यु, जरा से छुटकारा पा जाता है।

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