36/84 महादेव : श्री मार्कण्डेयेश्वर महादेव मंदिर

ये मां संपूजयिष्यन्ति हृद्यै: पुष्पै: सुगन्धिभि:।
दीर्घायुजो भविष्यन्ति सदा दु:खविवर्जिता:।।

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लेखक – रमेश दीक्षित

(अर्थात जो मनोरम पुष्पों से मेरी अर्चना करेंगे, वे दीर्घायु तथा दु:खरहित रहेंगे।)

मार्कण्डेयेश्वर महादेव मंदिर विष्णु सागर उद्यान में ही भव्यता के लिए प्राचीन काले पत्थरों के 12 स्तम्भों पर आधारित है। इसका उत्तरमुखी प्रवेश द्वारा मात्र 4 फीट ऊंचा है जो काले पत्थरों से निर्मित है तथा भीतर लोहे का एक दरवाजा है। 4 फीट चौड़ी पीतल की जलाधारी के मध्य लगभग डेढ़ फीट ऊंचा दिव्य शिवलिंग नाग द्वारा आवेष्ठित है।

लिंग माहात्म्य की कथा-

महादेव ने देवी पार्वती को सुनाया कि पुत्रेष्णा के वश में मृकण्डु ऋषि तपस्या के लिए हिमालय चले गये। वहां वायु-भक्षण या निराहार रहकर उन्होंने शीर्षासन में 12 वर्ष तक तप किया। जिससे आकाश और पृथ्वी कम्पित हो उठी। तब तुमने मुझसे कहा था कि यदि आप इनको पुत्र नहीं देते तब लोग आपको तप: फलदाता क्यों कहेंगे।

आप मेरी बात मानकर इन्हें पुत्र दीजिए। इस पर मैंने तुम्हारे कथानुसार बात करने की बात कही थी। तब मैंने कहा था कि यह विप्र महाकालवन जाकर एक पुण्यप्रद महापातक लिंग की अर्चना करें। तुम्हारें कहने पर मृकण्डु मुनि महाकालवन गये तथा लिंगार्चन करते हुए अवस्थान किया।

अर्चना से प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारा इच्छित वर प्रदान किया। मैंने यह भी कहा कि तुम्हारा पुत्र ऐश्वर्य संपन्न, दीर्घायु, सर्वज्ञ तथा सुखी होगा। ऐसा कहते ही मुनि की मार्कण्उेय नामक महातपस्वी पुत्र प्रादुर्भूत हुआ तथा जन्मते ही तप करने लगा। महादेव ने कहा मैं प्रसन्न हूं तथा लोक में यह लिंग मार्कण्डेयेश्वर के नाम से प्रसिद्ध होगा।

फलश्रुति-

जो इस लिंग का दर्शन करेंगे वे नित्य सदानन्द गति लाभ करेंगे, प्रसंगत: भी दर्शन करने वाले सर्व दु:खरहित होकर आमोदित रहेंगे।

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