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46/84 महादेव : श्री वीरेश्वर महादेव मंदिर

अत्र दत्तं हुतं जप्तं स्तुतमर्चितमेव च।
तदक्षयंं भवेदत्र भक्तानां नात्र संशय:।।

(अर्थात- यहां(अवन्ती) भक्तों द्वारा प्रदत्त दान, होम, जप तथा अर्चना, सभी अक्षय हो जाता है,इमसें संशय नहींं।)
यह मंदिर ढाबा रोड के बाईं ओर दानी दरवाजा की तरफ जाते हुए स्थित है। इस प्राचीन मंदिर का प्रवेश द्वार और जलाधारी भी उत्तराभिमुख है।गर्भगृह में ३ फीट चौड़ी जलाधारी के मध्य १ फीट ऊंचा वीरेश्वर लिंग स्थापित है जो भूरे व लाल रंग के पाषण से निर्मित है।
लिंग दक्षिण की ओर कुछ झुका हुआ है तथा उत्तर की आरे कोई आकृति धारण किये है जो स्पष्ट नहीं है। प्रवेश पर बड़े ताख में दाईं ओर डेढ़ फीट ऊंची गणेशजी की सुंदर तथा मध्य में ऊपर के नीचे पार्वती की करीब सवा दो फीट ऊंची संगमरमर की कलात्मक व दर्शनीय प्रतिमाएं हैं।
बायें ताख में डेढ़ फीट की कार्तिकेय की संगमरमर की मनोहर व सुंदर प्रतिमा स्थापित है। साढ़े ४ फीट ऊंचा त्रिशूल तो है, पर मंदिर में न नाग की आकृति है, न डमरू ही। बाहर १८ इंच ऊंचे आसन पर काले प्रस्तर से निर्मित प्राचीन प्रतिमा है। सभामंडप में बाईं ओर मंछादेवी व दाईं ओर मांगलिक गणेश की प्रतिमाएं हैं।

लिंग माहात्म्य की कथा-

महादेव ने पार्वती को राजा अमित्रजित की कहानी सुनाते हुए कहा कि वह अनेक गुणों का आगार था। वह कंकालकेतु का वध कर अपनी रानी मलयगंधा के साथ आनन्द पूर्वक रहता था। उसे पुत्र न था इसलिए उसने तृतीया का सविधि व्रत किया। फलत: शिवकृपा से उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण राजा उसका मुख्य नहीं देख सका तो रानी ने उसे विकटादेवी के मंदिर में रखवा दिया।
रानी ने योगिनियों की सहायता से उसे मातृ का के पास भेज दिया तब सब देवियों ने उसकी वीरता देखते हुए महाकालवन स्थित पंचमुद्रादेवी के मंदिर में रखा जहां वह शिव की आराधना में लवलीन हो गया। स्वयं महादेव ने प्रकट होकर बालक को वर मांगने का कहा। बालक ने कहा- आप इस लिंग में सदा के लिए वास करें तथा सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करें। वीर बालक द्वारा पूजित होने से यह लिंग वीरेश्वर नाम से लोक प्रसिद्ध हुआ।

फलश्रुति-

वीरेश्वर लिंग के दर्शन मात्र से ही कुलवृद्धि होती है। इस लिंग की कथा सुनने से पितृगण विपुल पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। यहां भक्तों द्वारा प्रदत्त दान, होम, जप तथा अर्चना सभी अक्षय हो जाता है।

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