57/84 महादेव : श्री घण्टेश्वर महादेव मंदिर

By AV NEWS

ये पश्यन्ति विशालाक्षि देवं घण्टेश्वरं शिवम्।
ते घण्टाभिर्नादितास्त विभानै: सार्वकामिकै: ।।३२।।
यारस्यन्तिसुचिंरकालममलोकं सनातनम्।

(अर्थात – जो घण्टेश्वर शिव का दर्शन करते हैं, वे घण्टावाद्ययुक्तं सर्वकामप्रेद विभानारुढ़ होकर मेरे सनातन लोक में जाते हैं।)

लेखक – रमेश दीक्षित

मंदिर का वर्णन –

श्रावण मास में भूतभावन बाबा महाकाल के सवारी मार्ग में कार्तिक चौक तिराहे पर यह मंदिर स्थित है, श्री घण्टेश्वर महादेव के मूल मंदिर के पूर्वोत्तर में इससे जुड़ा हुआ एक और मंदिर बाद में बन गया है। जिसमें हनुमान जी, कार्तिकेय, गणेश व भैरव की मूर्तियां पृथक-पृथक भागों में स्थापित की गई। इसी के भीतर पुराने काले प्रस्तरों के कलांकित 8 स्तम्भों का सभामण्डप बना है। जिससे दो सीढिय़ां उतरकर पत्थरों की चौखट के भीतर स्टील के द्वार से 5 फीट ऊंचे पूर्वाभिमुखी प्रवेश द्वार में प्रवेश करने पर ढाई फीट चौड़ी पीतल की जलाधारी दिखाई देती है।

इस जलाधारी पर एक नाग की आकृति बनी है तथा एक नाग 7 इंच ऊंचे श्याम वर्ण लिंग पर छाया किए हुए है। फर्श पर ही काले पाषाण में निर्मित नंदी की मूर्ति 2 इंच ऊंचे आसन पर विराजित है। दीवारों पर गणेशजी, सामने ऊपर पार्वती तथा नीचे शिव पार्वती की काले प्रस्तर में बनी प्रतिमाएं स्थापित है। मंदिर अति प्राचीनता का द्योतक है।

लिंग के माहात्म्य की कथा-

महादेव देवी पार्वती से कहते हैं कि चाक्षुष मनु के समय घण्ट नामक एक गण ब्रह्मलोक जा पहुंचा, किन्तु उसे वहां प्रवेश तक न मिला। एक वर्ष बाद उसे देवर्षि नारद ब्रह्मसभा से बाहर आते दिख पड़े। घण्ट ने उनसे कहा मैं महादेव का प्रिय गण व गीततत्वज्ञ हूं। नारद उसे प्रतीक्षा करने का कहकर चले गये। उन्होंने महादेव को घण्ट के कारे में सारी बात बताई। महादेव ने उसे पृथ्वी पर देवदासवन के निकट शाप देकर पतित कर दिया।

 नारद उसे देखने की इच्छा से वहां पहुंचे। उन्होंने कहा तुम क्रोध न करो, पतित होने से ही तुम्हारा प्रायश्चित हो गया। नारद ने उसे महाकालवन भेजा तथा खन्तेश्वर के पूर्व में एक सर्वसम्पतिदायक उत्तम लिंग घण्टेश्वर नाम से प्रसिद्ध होगा। अन्य ऋषियों ने भी उसे वहीं जाने का कहा। वहां एक पापनाशक लिंग प्रादुर्भूत हुआ। घण्ट ने उसके दर्शन किये तथा सबसे अभिनन्दित होकर विमान में बैठकर शिवकृपा से शिवलोक जा पहुंचा।

फलश्रुति-

यदि व्याधिग्रस्त, पीडि़त, दीन, दु:खी प्रसंगत: भी घण्टेश्वर लिंग के दर्शन करता है तो वह सर्वकामदायक विमान में बैठकर स्वर्गलाभा करता है। वहां वह गन्धर्वों व अप्सराओं के साथ आनन्दोपभोरा करता है तथा पुण्य क्षय होने पर पुन: राजतुल्य होकर जम्बूद्वीप का अधिपति बन जाता है।

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