58/84 महादेव :  श्री प्रयागेश्वर महादेव मंदिर

या गीतर्योगयुक्तस्य सत्वस्थस्य मनीषिण:।
माघमासे समेष्यन्ति प्रयागेश्वरदर्शनम्।।४३।।
कत्र्तुये मानुषास्तेजामश्वरमेघ: पदे पदे।।४९।।

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(अर्थात – योगयुक्त योगी की जो गति है, वह प्रयागेश्वर के दर्शन से मिल जाती है। जो मानव माघ मास में इनका दर्शन करते हैं, पग-पग पर वें अश्वमेघ फल लाभ करते हैं।)

लेखक – रमेश दीक्षित

यह मंदिर जूना सोमवारिया क्षेत्र स्थित श्री तिलकेश्वर महादेव मंदिर के सामने वाले पक्के मार्ग पर एक फलांग दूर खेत में वाल्मीकि धाम से कुद ही दूरी पर राजामल शिप्रा घाट को पूर्वोत्तर दिशा में स्थित है। इसके पूवाभिमुखी 5 फीट ऊंचे पुराने प्रस्तर की चौखट के भीतर स्टील द्वार से 2 सीढिय़ां उतरकर साढ़े तीन फीट नाग आकृति से भूषित पीतल की जलाधारी के मध्य दिव्य प्रयागेश्वर लिंग प्रतिष्ठित है जिसके ऊपर पीतल का एक और 5 फणवाला नाग छाया किये हुए हैं।

लिंग के माहात्म्य की कथा –

महादेव देवी पार्वती से कहते हैं कि प्रथम कल्प में स्वायम्भुव मनु के काल में उनके यज्ञशील पुत्र जब तप: रत थे तब देवर्षि वहां पहुंचे। प्रियवत के कोई आश्चर्य जनक प्रसंग सुनाने पर नारद ने कहा कि एक बार श्वेतद्वीप स्थित सरोवर में मैंने एक कन्य देखी तथा उसका परिचय पूछने पर उसने आंखे बंद कर ली तभी मेरा सारा ज्ञान नष्ट हो गया। मुझे उसके शरीर में 3 पुरुष दिखे।

कन्या ने तब कहा कि ये तीन वेद हैं। मैंने उन्हें प्रणाम कर प्रयाग तीर्थ जाकर तपस्या शुरू कर दी। वहां मुझे भगवान श्री हरि ने प्रकट होकर कहा कि प्रयाग को साथ लेकर महाकालवन चलो वहां जाने से उत्तम ज्ञान मिलेगा तथा कीर्ति स्थित होगी। महाकालवन में हमें दिव्य लिंग के दर्शन हुए जिसमें से ब्रह्माजी और सभी वेद सहित सावित्रि भी दिखी। इनके दर्शनों से मेरा ज्ञान पुन: स्मरण हो आया। तभी से यह लिंग प्रयागेश्वर नाम से लोक प्रसिद्ध है क्योंकि नारद के साथ ही प्रयाग ने भी इस लिंग का पूजन किया था।

महादेव कहते हैं कि नारद का कथन सुनकर राजा प्रियवत महाकाल वन चले गए तथा वहां नौ नंदियों के दक्षिणस्थ लिंग का दर्शन किया।

फलश्रुति –

यह लिंग शतकोटितीर्थ परिवृत्त तथा स्वर्ग एवं अपवर्ग फलप्रद रूप हो गया। अश्वमेधयज्ञ की अब आवश्यकता नहीं, दु:खप्रदतप और कलेशप्रद कार्य आवश्यक नहीं। प्रयागेश्वर के दर्शन से इच्छित फल मिल जाता है।

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