कब है मौनी अमावस्या, जानें पूजा विधि और कथा

माघ मास में पड़ने वाली अमावस्या को मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है. इस साल मौनी अमावस्या 9 फरवरी यानी कल है. इस दिन दान धर्म कार्यों से यज्ञ और कठोर तपस्या जितने फल की प्राप्ति होती है. अमावस्या के दिन स्नान और दान का भी काफी महत्व होता है. क्योंकि इसे माघ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है ऐसे में इस दिन दान करने से शनि के दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, मौनी अमावस्या पर मनु ऋषि का जन्म हुआ था और मनु शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई.

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हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मौनी अमावस्या मनाई जाती है. इस दिन अमावस्या तिथि की शुरुआत 9 फरवरी यानी कल सुबह 8 बजकर 2 मिनट पर होगी और समापन 10 फरवरी को सुबह 4 बजकर 28 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, मौनी अमावस्या 9 फरवरी को ही मनाई जाएगी.

मौनी अमावस्या पूजा विधि

मौनी अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर भगवान विष्णु का ध्यान करके अपने दिन की शुरुआत करें।
इस दिन पवित्र नदी में स्नान करें और दान आदि करें।
नदी में स्नान करना संभव न हो, तो अपने घर में नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
माना जाता है कि इस दिन पवित्र नदी या गंगा जल से स्नान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है।
इसके बाद सूर्य देव को जल अर्पण करें और अपनी श्रद्धा के अनुसार दान करें।

मौनी अमावस्या का महत्व

ऐसा माना जाता है कि सभी अमावस्या तिथियों में मौनी अमावस्या महत्वपूर्ण होती है। मौनी अमावस्या के दिन मौन रहना एक अच्छा शगुन है। इतना ही नहीं, इस दिन पवित्र नदी में स्नान करना फलदायी होता है। इस दिन भगवान विष्णु की श्रद्धा पूर्वक पूजा की जाती है और दान किया जाता है। मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन दान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। साथ ही उनकी कृपा भी प्राप्त होती है।

क्यों रखा जाता है मौन व्रत?

मौनी अमावस्या के दिन लोग मौन रहकर पूरा दिन बिताते है. शास्त्रों के अनुसार यह चन्द्रमा को मन का देवता माना गया है और अमावस के समय चन्द्रमा के दर्शन नहीं होते जिसके चलते मनुष्य के मन की स्थिति बिगड़ने लगती है. इसलिए मौनी अमावस के दिन चुप रहकर यानि मौन धारण कर मन की स्थिति को संभालने की कोशिश की जाता है और मन में ईश्वर का जाप करके दान का पुण्य प्राप्त किया जाता है.

मौनी अमावस्या व्रत की कथा

मौनी अमावस्या के दिन यह कथा सुनने अथवा सुनाने का प्रचलन माना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार यह बताया जाता है कि कांचीपुर की एक कन्या जब विवाह के योग्य हो गई थी तब उसके पिता ने पंडित को उसकी कुंडली दिखाई. पंडित ने कुंडली में वैधव्य दोष बताया. इसके बारे में बताने के साथ ही पंडित जी ने दोष से बचने का रास्ता भी बताया. उनके कहे अनुसार कन्या सिंहल द्वीप के पास रहने वाले धोबी का आशीर्वाद लेने पहुंची. जिस पेड़ के नीचे बैठकर दोनों सागर के बीच पहुंचने का रास्ता ढूढ़ रहे थे उस पर एक गिद्ध का घोंसला था तो गिद्ध के बच्चों को दोनों भाई-बहन ने पूरी बात बताई.

उनके यहां आने का वजह जानकर गिद्ध के माता-पिता ने उन दोनों को अपनी पीठ पर बैठाकर सिंहल द्वीप ले गए. वहां जाकर कन्या ने सोमा को अपनी सेवा से प्रसन्न कर दिया. जब सोमा को उसके वैधव्य दोष के बारे में पता चला तो उसने अपना सिंदूर दान कर अखंड सौभाग्यवती का वरदान दिया. जिस दिन उस कन्या का विवाह हुआ वह मौनी अमावस का ही दिन था. तभी से माना जाता है मौनी अमावस्या महाव्रत की शुरुआत हुई.

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