इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य श्रीवास्तव विवादों में

आउटसोर्स कर्मचारियों के भुगतान में बड़ा घालमेल
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उज्जैन। इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य के खिलाफ सरकार को शिकायतों का पुलिंदा भेजा गया है। उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए गए हैं। उनका तबादला कर दिया गया था वे स्टे ले आए। प्राचार्य सभी आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं। कहते हैं कि यह मेरे खिलाफ साजिश है।
सरकार को की गई शिकायत में बताया गया कि इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य जेके श्रीवास्तव ने कई गंभीर अनियमितताएं की हैं। आउट सोर्स एजेंसी यश गोविंद मार्केटिंग द्वारा प्रस्तुत देयकों में कर्मचारियों के नाम का उल्लेख न करते हुए कोड का प्रयोग किया है। कर्मचारियों ने संस्था के लिए काम नहीं किया फिर भी उनका भुगतान संस्थान से किया गया। यानी जितने कर्मचारी काम कर रहे हैं उनसे ज्यादा कर्मचारियों का भुगतान किया गया।
1 ही माह में कैसे बढ़ गए 34 कर्मचारी?
शासन के आदेश पर दिनांक 21 दिसंबर 2024 को उमेश पेंढारकर ने प्रभारी प्राचार्य का पदभार ग्रहण किया। इसके बाद डॉ. पेंढारकार ने 23-12-24 को आउट सोर्स कर्मचारियों का भौतिक सत्यापन करवाया। उपस्थित और अनुपस्थित कुल मिला कर 79 थे। जेके श्रीवास्तव ने पेंढारकर के प्रभारी प्राचार्य बनने के बाद न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और 23 दिसंबर को ही स्टे ले आए। पुन: प्रभारी प्राचार्य बन गए। अब श्रीवास्तव ने आउट सोर्स कर्मचारियों का जनवरी 2025 में जो देयक स्वीकृत किया उसमें ११३ कर्मचानियों के भुगतान का उल्लेख था। अब सवाल यह उठता है कि 34 कर्मचारी कहां से बढ़ गए?
कर्मचारियों की संख्या कम कैसे हो गई?
जेके श्रीवास्तव ने पेंढाकर की नियुक्ति पर स्टे लिया था। वह स्टे 26 मार्च 2025 को खारिज हो गया। 27 मार्च को एक बार पुन: पेंढारकर प्रभारी प्राचार्य बन गए। यश गोविंद मार्केटिंग कर्मचारियों की उपस्थिति 114 बताती है। यही एजेंसी अपै्रल 2025 में कर्मचारियों की संख्या 95 बताती है। सवाल यह है कि पेंढारकर ने आपत्ति नहीं ली फिर यह संख्या अचानक कम क्यों हो गई? यही शिकायत सरकार को की गई है। यानी यहां घालमेल किया गया।
एजेंसी कर्मचारियों को कम कर रही है भुगतान
सरकार को की गई शिकायत में यह भी बताया गया है कि इंजीनियरिंग कॉलेज में जो कर्मचारी एजेंसी द्वारा काम कर रहे हैं उनका आर्थिक शोषण किया जा रहा है। देयक स्पष्ट नहीं बनाया जाता है। एक कर्मचारी के लिए जितना वेतन कॉलेज से लिया जाता है उतना भुगतान नहीं किया जाता। मसलन, जिसे 14 हजार मिलना चाहिए उसे 12 हजार दिए जा रहे हैं। सवाल यह है कि प्राचार्य देयक पर हस्ताक्षर कैसे कर रहे हैं। कई कर्मचारियों का ईपीएफ भी जमा नहीं किया जा रहा है।
शासकीय फंड का दुरुपयोग इस प्रकार किया
सरकार के आदेश हैं कि आउट सोर्स एजेंसी का भुगतान कॉलेज के स्वशासी मद से किया जाएगा। जबकि जेके श्रीवास्तव ने एजेंसी का भुगतान शासकीय मद क्रमांक 8885 से कराया जा रहा है। एवं अब रुपए एक करोड़ 86 लाख 67 हजार 621 रुपए का भुगतान किया गया। यह सारा भुगतान शासकीय कोषालय से किया गया।
भुगतान के प्रभारी बदलते गए
कॉलेज की परंपरा यही रही है कि किसी भी प्रकार की खरीदी का भुगतान करना है तो एक प्राध्यापक को प्रभारी बनाया जाता है। कर्मचारियों के भुगतान में भी पहले प्रभारी रखे गए। जब श्रीवास्तव चार्ज में आए तो यह परंपरा तोड़ दी। वे स्वयं ही देयक के सर्वेसर्वा हो गए। कॉलेज में सरकार की तरफ से एकाउंट ऑफिसर नियुक्त है। प्रभारी प्राचार्य यानी श्रीवास्तव ने एकाउंट ऑफिसर से देयक पर हस्ताक्षर नहीं कराए।
कॉलेज का दुर्भाग्य प्राचार्य नहीं मिले
इसे इंजीनियरिंग कॉलेज का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इसे 2009 से स्थायी प्राचार्य नहीं मिला। अंतिम प्राचार्य डॉ.सीके जैन थे। वे 2006 से 2009 तक रहे। इसके बाद डॉ.जेके श्रीवास्तव, डॉ. एसके जैन, डॉ.केएस चंदेल, प्रो. सीडी पाटिल, डॉ. उमेश पेंढारकर और अतुल स्थापक,यह सभी प्रभारी प्राचार्य ही रहे। वर्तमान व्यवस्था भी प्रभारी के भरोसे ही चल रही है।
प्रभारी प्राचार्य ने कहा ऐसा कुछ नहीं है
प्रभारी प्राचार्य डॉ.जेके श्रीवास्तव का कहना है कि उन पर लगाए गए आरोप मिथ्या हैं। वे कॉलेज में सबसे सीनियर हैं। इसलिए कुछ लोगों को पीड़ा हो सकती है। शिकायतों में दम नहीं है। आउट सोर्स कर्मचारियों के मामले में सरकार जांच करवा ले, वे तैयार हैं।