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शनिश्चरी अमावस्या कल मनेगी, पितरों की पूजा के लिए श्रेष्ठ दिन

अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन। शनिश्वरी अमावस्या 23 अगस्त को आ रही है। अमावस्या कई संयोगों से युक्त है और पितरों की पूजन के लिए यह श्रेष्ठ दिन है। जानकारों का मत है कि पितरों के निमित्त धूप-ध्यान शुक्रवार दोपहर 12 बजे बाद करना श्रेष्ठ है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की यह अमावस्या शनिवार को होने के कारण शनिश्चरी है। इस अमावस्या को ग्रह गोचर एवं ग्रहों के परिभ्रमण के आधार पर देखें तो ग्रहों की युतियां अलग-अलग प्रकार के संकेत दे रही हैं। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक परिघ योग में आने वाली यह अमावस्या सुबह 9 बजे बाद धार्मिक क्रियाओं के लिए विशेष फलदायी मानी जाएगी। परिघ योग सभी 27 योगों में से 19वां योग है।

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पं. अमर डब्बावाला के मुताबिक शनिश्चरी अमावस्या के साथ-साथ इसे पिठोरा या कुश ग्रहणी अमावस्या भी कहा गया है। इस दिन कुश या पवित्रा का संग्रहण विशेष तौर पर करते हैं। त्रिवेणी स्थित शनि मंदिर पर अमावस्या पर विशेष पूजन व स्नान होता है। लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचकर स्नान करते हैं। पुजारी पं. राकेश बैरागी के मुताबिक शनिवार के दिन अमावस्या के होने से शनि महाराज की प्रसन्नता के लिए अलग-अलग प्रकार से उपाय किए जा सकते हैं, जो जातक शनि महाराज की साढ़ेसाती से या शनिदेव की ढैया, महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा से गुजर रहे हैं, उन्हें वैदिक या पौराणिक उपाय से अनुकूलता की प्राप्ति व बाधाओं का निराकरण होगा। मान्यता है कि त्रिवेणी मंदिर पर श्रद्धालु आकर स्नान-पूजन करते हैं और अपने पहने हुए कपड़े और जूते-चप्पल छोडक़र जाते हैं, ताकि उनकी पीड़ा कम हो।

पितरों की पूजा के लिए श्रेष्ठ समय
ज्योतिषि वीपी शुक्ला के मुताबिक अमावस्या पर बहुत कम ऐसे योग बनते हैं, जब सूर्य, चंद्र, केतु की युति एक साथ सिंह राशि में हो। विभिन्न पुराणों की मान्यता को देखें तो पितरों के लिए यह स्थिति श्रेष्ठ मानी जाती है। जब सूर्य, चंद्र, केतु एक ही राशि में गोचर हो, उस दिन पितृ की पूजा करना चाहिए। इस दिन तर्पण पिंडदान करने से पितरों को अनुकूलता प्राप्त होती है। जन्म कुंडली के पितृदोष का निराकरण इस दिन किया जा सकता है।

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शनि महाराज की प्रसन्नता के लिए करें अलग-अलग अनुष्ठान
पं. शुक्ला के मुताबिक वर्तमान में शनि मीन राशि में ही रहकर के वक्री चल रहे हैं और वक्र दृष्टि से अलग-अलग प्रकार की दृष्टियां अलग-अलग राशियों पर अवस्थित है। इस दृष्टि से मकर, कन्या, मिथुन राशि वाले जातकों को स्वास्थ्य संबंधित सावधानी रखने की आवश्यकता है और जिन्हें शनि की साढ़ेसाती या डैया चल रही है महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा चल रही है, उन्हें संभलकर रहने की आवश्यकता है। सुरक्षा और सफलता के लिए शनि स्तोत्र का पाठ, शनि कवच का पाठ या शनि मंदिर पर तिल के तेल से अभिषेक करने एवं शनि महाराज की वस्तुओं का दान करने पर अनुकूलता एवं सफलता की प्राप्ति होगी।

शनिश्चरी अमावस्या पर विभिन्न राशि के जातक यह दान कर सकते हैं

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मेष- सूती वस्त्र का दान।

वृषभ- सफेद खाद्य वस्तु का दान।

मिथुन- खड़े धान का दान।

कर्क- नदी पर या शिवलिंग पर गाय का दूध अर्पित करें।

सिंह- पीपल के वृक्ष पर जल का सिंचन करें।

कन्या- हरा मूंग किसी संन्यासी को दें।

तुला- काली तिल्ली का दान ब्राह्मण को करें।

वृश्चिक- कनिष्ठ वर्ग को वस्त्र, आभूषण या कोई गिफ्ट दें।

धनु- काली गाय को हरी घास खिलाए।

मकर- शनि महाराज की उपासना करें।

कुंभ- विद्यार्थी को पुस्तकें दान कर दें।

मीन- बीमार व्यक्ति की सहायता मेडिसिन या फल देकर करें।

पितरों के निमित्त आज धूप-ध्यान कहना बेहतर

यह अमावस्या दो दिन यानी 22 और 23 अगस्त को रहेगी। अमावस्या तिथि की शुरुआत 22 अगस्त की सुबह करीब 11.35 बजे होगी, ये तिथि 23 की सुबह 11 बजे तक रहेगी। पितरों के लिए धूप-ध्यान 22 अगस्त की दोपहर में करेंगे तो श्रेष्ठ रहेगा, क्योंकि दोपहर करीब 12 बजे के समय को कुतपकाल कहते हैं, इस समय में ही पितरों के लिए धूप-ध्यान, श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान करना शुभ रहता है। 23 की सुबह अमावस्या तिथि कुतपकाल से पहले 11 बजे ही खत्म हो जाएगी।

इस दिन नदी स्नान और अमावस्या से जुड़े अन्य शुभ काम किए जा सकते हैं। ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, भादौ अमावस्या को पितरों के लिए धर्म-कर्म करने के लिए बहुत शुभ माना जाता है, क्योंकि इसके करीब 15 दिन बाद से पितृ पक्ष शुरू हो जाता है। धूप-ध्यान का अर्थ है ध्यान लगाना और धूप प्रज्वलित करना। ये पितृ अमावस्या पर किया जाने वाला एक विशेष अनुष्ठान है। अमावस्या की दोपहर में गाय के गोबर से बने कंडे जलाएं और जब कंडों से धुआं निकलना बंद हो जाए, तब अंगारों पर गुड़-घी अर्पित करें। इस दौरान पितरों का ध्यान करते रहें। गुड़-घी के साथ ही खीर-पुड़ी भी अर्पित कर सकते हैं। इसके बाद हथेली में जल लें और अंगूठे की ओर से पितरों को चढ़ाएं, पितरों को जल चढ़ाने को ही तर्पण करना कहते हैं।

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