आने से पहले ब्रेन अटैक देता है चेतावनी, नजरअंदाज नहीं करें

डॉ. अपूर्व पौराणिक न्यूरोलॉजिस्ट इंदौर लकवा या ब्रेन अटैक की बीमारी यूं तो अचानक आती है लेकिन यह अपने आने से पहले चेतावनी जरूर देती है, अगर इन संकेतों को पहले से जान लिया जाए तो समय सीमा में मॉडर्न इलाज मिल सकता है और गंभीर बीमार होने से बचा जा सकता है। ब्रेन अटैक से पहले शरीर का दायां, बायां या आधे भाग की ताकत समाप्त हो जाती है। मुंह तिरछा होने से बोलने-समझने में दिक्कत होती है। खड़े होने-चलने में बैलेंस नहीं बनता और एक दम से दिखना भी कम हो जाता है। यह लक्षण यदि पांच-दस मिनट से ज्यादा देर तक रहते हैं तो तुरंत किसी अच्छे अस्पताल में उपचार के लिए पहुंचना चाहिए। यहां सीटी स्कैन/एम.आर.आई और आईसीयू की सुविधा होनी चाहिए। ऐसे हालाल में एमडी मेडिसिन डॉक्टर और न्यूरोलॉजिस्ट से तत्काल संपर्क करना चाहिए।
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प्रारंभिक इलाज
ब्रेन अटैक के पहले चार घंटे में एक खास इंट्रावीनस इंजेक्शन लगना चाहिए, इससे ब्रेन की धमनी में आए क्लॉट को खत्म किया जा सकता है और लकवा टाला जा सकता है।
छह से 24 घंटे के बीच कुछ कैथ लैब सुविधा वाले अस्पतालों में न्यूरोलॉजिस्ट दिमाग की आर्टरी में कैथेटर या तार डालकर क्लॉट को खींच लेते हैं। इससे चमत्कारिक लाभ संभव है। शुरू के एक सप्ताह में कुछ उपचार ऐसे होते हैं, जो आईसीयू में ही संभव हो पाते हैं। पक्षाघात, लकवा या ब्रेन अटैक भारत में मृत्यु और लंबी विकलांगता का तीसरा सबसे बड़ा कारण है।
यह सावधानी रखें
ब्रेनअटैक से काफी हद तक बचा जा सकता है। इसके लिए कुछ सावधानी रखना जरूरी है।
ब्लडप्रेशर और डायबिटीज पर सख्त कंट्रोल रखना जरूरी है।
खून पतला करने वाली दवाइयां, जैसे कि एस्पिरिन तथा कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली स्टेटिन श्रेणी की दवाइयां बिना नागा लेते रहें। इनके सेवन से ब्रेन अटैक की आशंका कम हो जाती है।
तबांकू सेवन, धूम्रपान और शराब से दूरी बनाएं।
आलस भरी थुलथुली जीवन शैली छोडें़। मेहनत, व्यायाम और स्पोर्ट्स से भरपूर दिनचर्या अपनाएं।
फिजियोथैरेपी से ठीक होने की ज्यादा संभावना
ब्रेन अटैक के अधिकतर मरीज 3 से 4 महीने में धीरे-धीरे ठीक होते हैं।
वह ब्रेन अटैक से पहले जैसा 100 फीसदी स्वास्थ्य तो हासिल नहीं कर पाते, लेकिन दैनिक गतिविधियों के लिए आत्म निर्भर हो जाते हैं।
इस सुधार में दवाइयों की भूमिका नगण्य होती है।
टॉनिक ,ताकत की दवा के बजाया फिजियोथैरेपी से मरीज जल्दी ठीक होते हैं। इसलिए आक्युपेशनल थेरपी लगातार कराते रहना चाहिए। हालांकि इसका फायदा एकदम से नजर नहीं आता। इसलिए बहुत धैर्य रखना पड़ता है, मरीज को भी और घरवालों को भी। दुर्भाग्य से लोग किसी चमत्कार की तलाश में भटकते रहते हैं। जो मरीज कुछ हद तक ठीक हो गए हों उन्हें काम पर लौटना चाहिए, पहले जैसा न सही, कुछ कम ही सही सक्रिय रहना चाहिए।










