आचार्य विशुद्धसागर जी बोले : प्रसन्न रहो और दूसरों को भी प्रसन्नता दो

उज्जैन। दिगंबर जैन धर्म गुरु आचार्य विशुद्धसागर जी ने कहा एक प्रकाशित दीप हजारों दीपकों को प्रकाशमान कर देता है। शहर के मध्य सरोवर में खिला एक पुष्प अनेकों को प्रफुल्लित करता है। एक जिन प्रतिमा अनेक भक्तों को आनन्दित करती है, सूर्य की एक किरण अंधकार का क्षय कर देती है। हमेशा प्रसन्न रहो। प्रसन्न चित चेहरा सभी को आनन्दित करता है।

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आचार्यश्री धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ऐसे कार्य करो, जिससे देश, धर्म एवं संस्कृति का उत्थान हो। कमल के समान खिलना, महकना सीखो। दीप की तरह प्रकाशमान बनो। चंदन के समान सुगंधित बनो। मिश्री की भांति मीठे बनो।

लाठी नहीं, बांसुरी बनो: बांस से ही लाठी बनती है और बांस से ही मधुर बांसुरी बनती है। किसी का सिर फूट जाय ऐसी लाठी मत बनो, अपितु मधुर मन भावन ध्वनि देने वाली बांसुरी बनो। कौआ भी काला होता है और कोयल भी काली होती है, उसकी आवाज से पहचान हो जाती है।

हमारी वाणी बाण की तरह न चुभे, अपितु बांसुरी की तरह मधुर हो। हमारा व्यवहार मिलनसार, मुधर होना चाहिए। वाणी की मधुरता जन-जन का प्रिय बना देती है। संग्राम नहीं, समझौता करना भी सीखो। समय के ताव के अनुसार जीवन जीना सीखो। विष नहीं, अमृत बनो। कैंची नहीं सुई बनो। शूल नहीं, कूल बनो।

जीवन में दृष्टि का महत्व: व्यक्ति की दृष्टि विशाल, पवित्र एवं दूरवर्ती होना चाहिए। दूर दृष्टि अपने अनुमान ज्ञान से आगत संकटों को पहले से ज्ञात कर संकटों से बच जाता है। एक कुंभकार मिट्टी में मटका देखता है और उचित प्रक्रिया करके शीतल जल करने वाला कुंभ निर्मित कर धन कमाता है। शिल्पकार पाषाण में प्रतिमा निहारता है, ग्वालिन दुग्ध घृत देख लेती है, कृषक बीज वृक्ष देख लेता है वैसे ही सच्चा साधक आत्मा में परमात्मा को निहारता है और तप त्याग कर सिद्धि प्राप्त करता है।

हर कार्य में दृष्टि का महत्व है। यदि भवन भी बनाना है तो दृष्टि में नक्शा आता है, फिर कागज पर वह आकार लेता है, फिर उसके अनुसार भवन निर्माण होता है। जीवन में उन्नति के लिए हमें दृष्टि का महत्व समझना चाहिए।

भावों को संभालो सडऩे से बचो
बाहर की गर्मी से फल सड़ जाते हैं। ऐसे ही कषाय की गर्मी से आत्मा विकृत हो जाता है। अपने आपको काम, क्रोध, मान, माया, राग-द्वेष, ईष्र्या की गर्मी से बचाओ। फल सड़ गया तो फेंक दोगे पर यदि शरीर, मन सड़ गया तो भव-भव में भ्रमण कर कष्ट भोगना पड़ेगा। मन को बिगडऩे से बचाओ। तन को सडऩे से बचाना है तो शाकाहार करो। अल्प बोलो, अति से बचो।

जीर्णोद्धार शिलान्यास समारोह 18 को
पट्टाचार्य विशुद्धसागर महाराज ससंघ के सानिध्य में अति प्राचीन 1008 श्री पाश्र्वनाथ जिनालय, नयापुरा के जीर्णोद्धार कार्य का शुभारंभ १८ मई को होगा। महाराजश्री की आगवानी के लिए सुबह 7 बजे निकास चौराहा बुधवारिया से जुलूस निकाला जाएगा। जो गीता कॉलोनी, अब्दालपुरा, जीवाजीगंज थाना, नामदारपुरा होते हुए श्री पाश्र्वनाथ जिनालय, नयापुरा पहुंचेगा। शिलान्यास के बाद आचार्य की पुन: ग्रीष्म कालीन वाचना कालिदास मांटेसरी स्कूल में होगी। यहीं पर उनके प्रवचन भी होंगे।

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