Advertisement

सट्टा बंद नहीं हुआ, पकड़ना बंद हो गया आज भी ओपन टू क्लोज में उलझे हैं लोग

पुलिस के मुखबिरों को पता है खाईवाल कहां हैं मजदूर वर्ग में ज्यादा प्रचलित है यह कारोबार

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

Advertisement

अक्षरविश्व न्यूज:उज्जैन। मजदूरों और मेहनकशों का परिवार बर्बाद करने वाला ओपन-टू-क्लोज का धंधा आज भी बंद नहीं हुआ। खाईवाल फल फूल रहे हैं और लगाई वाल अपने को नर्क में धकेल रहे हैं। सट्टे के इस कारोबार का इतिहास रहा है कि बुक्की ही फले फूले हैं और करोड़पति बन कर बैठे हैं। पुलिस इस समय दूसरे मामलों में उलझी हुई है। इसके बाद सटोरियों के खिलाफ अभियान शुरू होगा।

शहर के कुछ प्रमुख केंद्र हैं जहां सुबह होते ही राधे-राधे या जय श्रीराम के बदले सबसे पहले यह पूछा जाता है कि रात में क्या आया। यानी क्लोज में। अनुभवी बता देते हैं बम्बई क्लोज और कल्याण की रिपोर्ट क्या थी। इसके बाद इन सटोरियों की सुबह होती है। इनके पास जंत्री होती है जिससे यह पता करते हैं कि पत्ता क्या आएगा और फीचर क्या आएगा। कई बार इनकी जंत्री गलत साबित होती है और कई बार तुक्का लग जाता है।

Advertisement

सटोरियों को पता है लेकिन…

सटोरियों को पता है कि सट्टा बाजार कहां से संचालित होता है। इस पर कई फिल्में बन चुकी हैं। कई कलाकारों ने नेशनल बुक्की का रोल अदा किया है। पहले बम्बई और कल्याण के नाम से ही सट्टा होता था। अब इसका दायरा बढ़ गया है। मेन बाजार, कल्याण नाइट, मिलन डे, मिलन नाइट, रुणमणि मॉर्निंग, रुकमणि डे, मधुर डे, मधुर नाइट आदि सट्टे बाजार में आ गए हैं।

Advertisement

इन सभी के रेट भी अलग-अलग हैं। पत्ते के एक रुपए के 140 मिलते हैं और फीचर के एक नौ-साढ़े नौ मिलते हैं। पत्ता बढ़ते क्रम में होता है जैसे 257 यह तीन अंक हैं। इनका योग हुआ 14 यानी फीचर बना सत्ता। सिक्वेंस यह 123 या 456 होता है। ट्रेल यानी 222, 333, 444, यानी वे तीन अंक जो एक ही होते हैं। इनका भाव ज्यादा होता है। ओपन-टू-क्लोज का मतलब यानी ओपन में किसी ने ५ अंक लगाया और क्लोज में 7 लगाया। दोनों ही अंक खुल गए तो इसका रेट ज्यादा मिलेगा। सटोरियों की भाषा में इसे पंजे से सत्ता कहते हैं।

इसमें बेईमानी नहीं होती

सट्टा बाजार के बारे में एक बार प्रचलित है कि इसमें पूरा काम ईमानदारी से होता है। मोबाइल पर बात हो जाती है। अंक खुलने पर लगाईवाल पूरी रकम भिजवा देता है। पहले बकायदा रंगीन छपी पर्ची पर सट्टा होता था। सट्टा घर में बुक्की के नौकर पर्ची लिखते थे। कुछ लोगों को बलन के लिए रखा जाता था। बलन का मतलब होता है जिसका अंक खुला उसकी राशि। वह पर्ची ले लेता था और रेट के हिसाब से भुगतान कर देता था।

हर शहर में सट्टा बताने वाले होते हैं। इनके पास सटोरियों की भीड़ लगी रहती है। ये अंक बताते हैं। अपने शहर में भी ऐसे गुरु जी, महाराज जी, बाबा जी और भाई साहब जी हैं जो अंक बताते हैं। सटोरियों को इनके ठिकाने पता हैं। सटोरिये तो ठीक यह अंक बताने वाले भी निहाल हो गए हैं। इनकी आर्थिक स्थिति भी सुधर गई है। बेशक, उन्होंने रास्ता कोई सा भी अपना लिया हो।

पाना उतारने के लिए रखते हैं योग्य व्यक्ति

लोगों को पता नहीं है कि सट्टे का लेखा-जोखा एक रजिस्टर में होता है। जिसे कहते हैं पाना उतारना। पाना उतारने के लिए योग्य व्यक्ति को रखा जाता है। यह गणित का जानकार होता है। यह व्यक्ति बुक्की का खास आदमी होता है। वह बता देता है कि आज मार्केट में कौनसा फीचर ज्यादा लगा है।

बन कर बैठे हैं कई सटोरिए

शहर में कई सटोरिए बन कर बैठे हैं। किसी की होटल है, किसी के पास खेत हैं, किसी के पास कॉम्प्लेक्स है। यानी आज की तारीख में वे करोड़पति हैं बेशक तीस साल पहले उनकी हालत कुछ भी रही हो। डॉ रमण सिंह सिकरवार जब यहां एएसपी थे, तब उन्होंने बहुत से सटोरियों के जुलूस निकाले। वे सटोरियों के काल कहे जाते थे।

इसी तरह सीएसपी रहे अरविंद सक्सैना, महेंद्र सिंह सिकरवार, नवलेश पाठक, राजेश जायसवाल के अलावा कई थानों में थाना प्रभारी रहे वासुदेव रावल, गिरीश सुबेदार, अनूप मिश्रा, सुनील बिरथरे, शैलेंद्र खुजनेरी, कुलवंत जोशी ने यहां जुलूस निकाले। वर्तमान में पंवासा, चिमनगंज मंडी के बाहरी इलाके, देवासगेट के आंतरिक इलाके, महाकाल, जीवाजीगंज के बाहरी इलाके, भैरवगढ़ की उत्तरी भाग, नीलगंगा के दक्षिण भाग, कोतवाली के आसपास के इलाकों में कतिपय खिलाड़ी आज भी पर्ची का खेल खेल रहे हैं। मुसद्दीपुरा से पुलिस ने लाखों का सट्टा पकड़ा था। उसके बाद कोई बड़ा बुक्की हाथ नहीं आया।

Related Articles