छह स्थायी विंग बनेंगी, हर एक का प्रभारी अलग
दो डिप्टी कलेक्टर और दो नायब तहसीलदार सहित 9 अफसर तैनात
अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन। श्री महाकाल लोक बनने के बाद श्री महाकालेश्वर मंदिर की व्यवस्थाओं में कसावट लाने की पहल शुरू हो गई है। कलेक्टर नीरजकुमार सिंह ने एक सेटअप तैयार किया है। इसे छह विंग में बांटा गया है। हर विंग का प्रभारी एक अफसर होगा और उसके नीचे एक पूरी टीम होगी। यह टीम अफसर के निर्देश पर काम करेगी। फिलहाल दो डिप्टी कलेक्टर और दो नायब तहसीलदार सहित 9 अफसरों को तैनात किया गया है।
अभी तक श्री महाकालेश्वर मंदिर की व्यवस्थाएं अस्थायी अरेजमेंट पर चल रही थीं। मंदिर में काम का कोई तय ढांचा नहीं था। ना ही विंग तय थी। अब पहली बार कलेक्टर ने मंदिर की पूरी व्यवस्थाओं को छह विंग में बांटा है। यह इस प्रकार है।
1- सुरक्षा 2-प्रोटोकॉल 3-सामान्य प्रशासन 4- बिल्डिंग एवं कंस्ट्रक्शन 5-इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रिकल सुरक्षा 6- साफ-सफाई
9 अफसरों के आदेश जारी
इन विंगों की कमान संभालने के लिए कलेक्टर नीरजकुमार सिंह ने ९ अफसरों को तैनात किया है। यह अफसर हैं, डिप्टी कलेक्टर सिम्मी यादव, एसएन सोनी, नायब तहसीलदार हिमांशु कारपेंटर, आशीष पलवाडिय़ा, परियोजना अधिकारी अरुण शर्मा, एटीओ एलएन मकवाना, एडीपीसी गिरीश तिवारी, उपयंत्री एसके पांडे, देवेंद्र परमार। इनमें से अरुण शर्मा और गिरीश तिवारी अपने मूलकाम के साथ श्री महाकालेश्वर मंदिर में सेवा देंगे। जबकि शेष अफसर पूरे समय श्री महाकालेश्वर मंदिर में तैनात रहेंगे। इनके बीच कार्यविभाजन मंदिर प्रबंध समिति प्रशासक प्रथम कौशिक करेंगे।
मंदिर की व्यवस्था में बदलाव
मंदिर का दायरा लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में एक स्थायी सेटअप होना जरूरी है। इसी के तहत अफसरों को तैनात किया है। यह विंग अनुसार काम संभालेंगे। इससे मंदिर की व्यवस्था बेहतर होगी।
नीरज कुमार सिंह, कलेक्टर एवं अध्यक्ष
श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति
महाकाल का दरबार भक्ति या विशेषाधिकार
क हते हैं, भगवान के दरबार में सभी समान होते हैं, लेकिन महाकाल मंदिर में यह विचार धुंधला पड़ जाता है। यहां आस्था से ज्यादा हैसियत मायने रखती है। वीआईपी भक्त गर्भगह या गर्भगृह की चौखट तक पहुंचकर मत्था टेकते हैं, शांति से दर्शन करते हैं और रील बनाकर सोशल मीडिया पर अपनी विशेष पहचान बताते हैं।
दूसरी ओर , आम श्रद्धालु धक्का-मुक्की और टोका-टोकी के बीच बाबा की एक झलक पाने के लिए तरसता है। ऐसे में सवाल उठता है क्या भगवान के दरबार में भी भक्ति का मोल पैसे और रसूख से तय होगा? जब ईश्वर सबके लिए समान हैं तो उनके दर्शन के नियम भी समान क्यों नहीं हो सकते? यह भेदभाव सिर्फ व्यवस्था का प्रश्न नहीं, बल्कि आस्था की बुनियाद पर भी एक गंभीर सवाल है। महाकाल की नगरी में क्या वास्तव में हर भक्त को समान अधिकार मिलेगा या फिर भक्ति भी विशेषाधिकार की मोहताज बनी रहेगी?