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महाकाल नगरी में कल से छह दिन मनेगा दीपपर्व उत्सव

उज्जैन। महाकाल की नगरी उज्जैन मेें दीप पर्व का उत्साह शनिवार से शुरू हो जाएगा। खासबात यह है कि धनतेरस से भाईदूज तक मनने वाला उत्सव इस बार पांच की जगह छह दिन का रहेगा। शहर में इस दौरान कई धार्मिक आयोजन होंगे। महाकाल मंदिर में शनिवार को धनतेरस मनेगी। पुजारी, पुरोहित राष्ट्र की सुख, समृद्धि के लिए चांदी के सिक्के से महाकाल की महापूजा करेंगे।

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महापूजा के बाद मंदिर समिति चिकित्सा इकाई में आरोग्यता के लिए भगवान धन्वंतरि का पूजन करेगी। 20 अक्टूबर को कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि का महासंयोग बन रहा है। तड़के 4 बजे भस्म आरती में पुजारी भगवान महाकाल को केसर चंदन का उबटन लगाकर गर्म जल से स्नान कराएंगे। नवीन वस्त्र सोने, चांदी के आभूषण से विशेष श्रृंगार के बाद अन्नकूट में छप्पन व्यंजनों का भोग लगाकर फुलझड़ी से आरती की जाएगी। मंदिर की चिंतामन स्थित गोशाला में 22 अक्टूबर को गोवर्धन पूजा होगी।

जानिए किस दिन कौन सा त्योहार मनेगा

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धनतेरस और धन्वन्तरि जयंती- 18 अक्टूबर को धनतेरस मनेगी।

चतुर्दशी : 19 अक्टूबर की शाम कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी पर यम और दीपदान करें।

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20 को सुबह चतुर्दशी का मुख्य कार्य होगा। प्रात: 5 बजे अरुणोदय काल में अभ्यंग स्नान श्रेष्ठ है। इसके बाद कार्तिक स्नान और यमतर्पण दीपदान किया जाए।

दीपावली-20 अक्टूबर को अमावस्या तिथि प्रदोष काल के साथ-साथ मध्य रात्रि तक रहेगी। ऐसे में लक्ष्मीपूजन के लिए २० अक्टूबर का दिन ही श्रेष्ठ है। 21 अक्टूबर को अमावस्या प्रदोष काल में मात्र स्पर्श कर रही है। इसलिए पड़वा नहीं रहेगी।

गोवर्धन पूजा- 22 अक्टूबर को प्रतिपदा तिथि होने से गोवर्धन पूजा, अन्नकूट और गौ आदि पूजन शास्त्र सम्मत है।

भाई दूज: भाई दूज पर्व निर्विवाद रूप से 23 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
(स्मृति विज्ञान अवंतिका शोध समिति के सचिव पं. रामचंद्र नायक के मुताबिक)

धनतेरस पर प्रदोष उपवास रखेंगे महाकाल

दीपोत्सव के पहले दिन शनिवार शनि प्रदोष का संयोग है। भगवान महाकाल इस दिन उपवास रखेंगे। शाम 4 बजे विशेष पूजन होगा।

धनतेरस-रूप चौदस के मुहूर्त

धनतेरस पर दो जगह पूजे जाएंगे कुबेर

धनतेरस पर शनिवार को दो जगह विराजित कुबेर जी पूजा होगी। प्राचीन मान्यता है कि उज्जैन ही वह भूमि है जहां कुबेर ने कठोर तप कर धनाधिपति का पद प्राप्त किया था। कोटितीर्थ के समीप स्थित कुबेर प्रतिमा की धनतेरस और दीपावली पर पूजा होती है। सांदीपनि आश्रम में कुबेर की नाभि मेें इत्र अर्पित करने की परंपरा है।

महाकाल में आतिशबाजी पर प्रतिबंध
छह दिनों तक महाकाल मंदिर मेें होने वाली विभिन्न दीपोत्सव की पूजा में प्रतीकात्मक रूप मेें सिर्फ एक फुलझड़ी जलेगी। मंदिर परिसर या प्रांगण में सभी तरह की आतिशबाजी प्रतिबंधित रहेगी। गौरतलब है कि महाकाल मंदिर नंदी गृह में हादसा होने के बाद से आतिशबाजी पर रोक लगा दी गई।

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