तुलसी विवाह कैसे कराया जाता है? जानिए

कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी ग्यारस या फिर देवउठनी एकादशी कहते हैं। 2025 में देवउठनी ग्यारस की यह शुभ तिथि शनिवार, 01 नवंबर 2025 के दिन पड़ रही है। इस शुभ अवसर पर लोग विधि विधान तुलसी माता और शालिग्राम जी का विवाह कराते हैं।
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कहते हैं तुलसी विवाह कराने से कन्यादान के बराबार पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही घर में सुख-समृद्धि आती है। कहते हैं जिन लोगों के घर कन्या नहीं होती उन्हें तो तुलसी विवाह कराकर कन्या दान का पुण्य फल जरूर प्राप्त करना चाहिए। चलिए बताते हैं तुलसी विवाह कैसे कराया जाता है और इस दौरान किन सामग्रियों की जरूरत पड़ती है।
तुलसी विवाह की सामग्री
- तुलसी का पौधा
- भगवान विष्णु या शालीग्राम जी की प्रतिमा
- लाल रंग का वस्त्र
- कलश
- आम के पत्ते
- पूजा की चौकी
- सुगाह की सामग्री (बिछुए, सिंदूर, बिंदी, चुनरी, सिंदूर, मेहंदी आदि)
- फल (मूली, शकरकंद, सिंघाड़ा, आंवला, अमरुद आदि)
- केले के पत्ते
- हल्दी की गांठ
- नारियल
- कपूर
- रोली
- गंगाजल
- घी
- धूप
- चंदन
तुलसी विवाह कैसे कराते हैं
तुलसी विवाह संपन्न कराने के लिए एक चौकी पर आसन लगाएं और उस पर तुलसी के पौधे को रखें।
इस बात का ध्यान रखें कि तुलसी का गमला गेरू से जरूर रंगा हो। अब दूसरी चौकी पर शालिग्राम भगवान को स्थापित करें।
अब गन्ने की सहायता से दोनों चौकियों के ऊपर मंडप बनाएं।
एक कलश में जल भरकर रखना है और उसमें पांच आम के पत्ते लगाकर पूजा स्थान पर रख लें।
अब घी का दीपक जलाएं।
भगवान शालिग्राम और तुलसी के पौधे पर गंगाजल छिड़कें। साथ ही रोली लगाएं।
तुलसी माता को चुनरी या साड़ी पहनाएं। साथ ही श्रृंगार सामग्री अर्पित करें।
इसके बाद चौकी समेत शालिग्राम भगवान को हाथों में लेकर तुलसी के पौधे की सात परिक्रमा करें। ये रस्म तुलसी जी और शालिग्राम
भगवान के सार फेरे कराने का प्रतीक होती है।
ध्यान रहे कि शालिग्राम भगवान को किसी पुरुष को ही उठाकर फेरे करवाने हैं।
अंत में तुलसी माता और शालिग्राम भगवान की आरती करें।









