अक्षय तृतीया को बनाती हैं खास ये बातें

हिंदू धर्म में शुभ तिथियों का विशेष महत्व है, अक्षय तृतीया इन शुभ तिथियों में से एक है। हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाता है। बोलचाल भी भाषा में इसे आखा तीज भी कहते हैं। इस बार ये पर्व 30 अप्रैल, बुधवार को मनाया जाएगा। अक्षय तृतीया से जुड़ी अनेक मान्यताएं, कथाएं, और परंपराएं हमारे समाज में प्रचलित हैं। कहते हैं कि अक्षय तृतीया पर जो भी उपाय, पूजन, यज्ञ-हवन किए जाते हैं, उनका संपूर्ण फल प्राप्त होता है। अक्षय तृतीया को क्यों इतना खास माना जाता है, इसके पीछे के कारणों को बहुत कम लोग जानते हैं। आगे जानिए इससे जुड़े 5 कारण…

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त्रेता युग का आरंभ भी इसी दिन
धर्म ग्रंथों में 4 युग माने गए हैं-सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग। ऐसी मान्यता है कि इनमें से त्रेतायुग की शुरूआत वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि से ही हुई थी, जिसे अक्षय तृतीया कहते हैं। त्रेता युग में कईं महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं जैसे इसी युग में भगवान श्रीराम का जन्म भी हुआ था, राक्षसों का राजा रावण इसी युग में मारा गया। एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु के नर और नारायण का अवतार भी अक्षय तृतीया पर ही हुआ था।

इसी दिन से शुरू हुआ था महाभारत का लेखन
मान्यता के अनुसार, जब महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की तो इसे कौन लिखे, इसे लेकर उन्होंने काफी सोच-विचार किया। सबसे पहले उन्होंने ब्रह्मदेव को आमंत्रित किया, तब ब्रह्मा ने उन्हें भगवान श्रीगणेश का आवाहन करने को कहा। जब भगवान श्रीगणेश आए तो महर्षि वेदव्यास का ग्रंथ लिखने के लिए हामी भर दी। भगवान श्रीगणेश ने जिस दिन महाभारत का लेखन शुरू किया था, उस दिन भी अक्षय तृतीया ही थी।

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इसी दिन जन्में थे भगवान परशुराम भी
धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु के परम क्रोधी अवतार परशुराम का जन्म भी अक्षय तृतीया तिथि पर ही हुआ था। हर साल इस तिथि पर ब्राह्मण समाज के लोग भगवान परशुराम की जयंती बड़ी ही धूम-धाम से मनाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान परशुराम अमर हैं यानी वे आज भी जीवित हैं। भगवान परशुराम किसी गुप्त स्थान पर रहकर तपस्या कर रहे हैं। परशुरामजी का जन्म दिवस होने के कारण ही अक्षय तृतीया को इतना शुभ माना गया है।

आद्य गुरु शंकराचार्य ने करवाई थी सोने की बारिश
अक्षय तृतीया से जुड़ी एक मान्यता ये भी है कि आद्य गुरु शंकराचार्य जब एक गरीब व्यक्ति के घर भिक्षा मांगने गए तो कुछ न होने पर भी उस व्यक्ति ने एक सूखा हुआ आंवला शंकराचार्य को भेंट कर दिया। उसकी गरीबी देखकर शंकराचार्य ने उसी समय कनकधारा स्त्रोत की रचना की जिसे सुनकर देवी लक्ष्मी बहुत प्रसन्न हो गई और उस गरीब व्यक्ति के घर सोने की बारिश करने लगी। इसलिए इस दिन सोने की खरीदी भी विशेष रूप से की जाती है। मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर खरीदा गया सोना घर में सुख-समृद्धि लेकर आता है।

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देवी लक्ष्मी ने कुबेर को बनाया धनाध्यक्ष
धर्म ग्रंथों के अनुसार, अक्षय तृतीया पर ही कुबेरदेव ने देवी लक्ष्मी को प्रसन्न कर धन की याचना की थी। प्रसन्न होकर महालक्ष्मी ने उसे धनाध्यक्ष यानी धन का स्वामी बना दिया। तभी से संसार के पूरे धन पर कुबेर का अधिकार है। धन के लिए देवी लक्ष्मी के बाद कुबेरदेव को ही पूजा की जाती है।

साल के 4 अबूझ मुहूर्तों में से एक
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पूरे साल में 4 ऐसे दिन आते हैं जब कोई भी कार्य जैसे विवाह आदि बिना मुहूर्त देखे किए जा सकते हैं, इन्हें अबूझ मुहूर्त कहा जाता है। ये 4 अबूझ मुहूर्त हैं- देवउठनी एकादशी, भड़ली नवमी, अक्षय तृतीया और वसंत पंचमी। अक्षय का अर्थ है संपूर्ण यानी पूजा, इस तिथि पर जो भी दान, हवन-यज्ञ, उपाय और शुभ कार्य किए जाते हैं, उसका संपूर्ण फल प्राप्त होता है।

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