यह है सर्वाङ्ग-सुन्दर ‘सुन्दरकाण्ड’ का अप्रतिम सौन्दर्य

रा मचरितमानस भगवान् शिव का मानस अर्थात् हृदय है। इस हृदय की धडक़न है सुंदरकाण्ड । सुंदरकाण्ड सर्वांग सुंदर है जिसमें भक्त-हृदय-तिलक तुलसी बाबा ने भक्त शिरोमणि हनुमान् जी की एकनिष्ठ स्वामी भक्ति, अलौकिक श्रद्धा, कुशाग्र बुद्धि, अपरिमित शौर्य, अद्भुत पराक्रम और सेवा व्रत का अति सुंदर वर्णन किया है । सुंदरकांड में सीता जी और हनुमान्जी दो ही चरित्र महान् हैं। राम सौंदर्य के आगार हैं तो सीता जी त्रैलोक्यसुंदरी हैं।

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संपूर्ण सुंदरकाण्ड में हनुमान् जी के बाहुबल, बुद्धि बल और भक्ति बल की त्रिवेणी के सुंदरतम कथानक और दृष्टांत देखने को मिलते हैं। यों तो समस्त रामायण ही मनोहर है किंतु उसमें भी सुंदरकाण्ड मनोहरता की पराकाष्ठा है। महाभारत के विराट पर्व की तुलना रामायण के सुंदरकाण्ड से की जाती है। सुंदरकाण्ड में श्री राम की शक्ति सीता जी सुंदर हैं, कथानक सुंदर है, नयनरम्य उपवन अशोक वाटिका सहित लंका पुरी भी सुंदरता की निधि है, हनुमान्जी का कर्तव्य बोध सुंदर है, सुंदरकाण्ड का कोई भी भाग असुंदर नहीं है। वह तो सर्वांग सुंदर है । प्रश्न यह है कि सुंदरकांड में सुंदर क्या नहीं है? मानस में अरण्यकांड, किष्किंधा कांड, सुंदरकाण्ड और लंका कांड स्थान से संबंधित हैं जबकि बालकांड, अयोध्या कांड और उत्तरकांड चरित्र से। आदिकवि वाल्मीकि ने रामायण की रचना करने में सबसे विलक्षण काव्यशैली का प्रयोग कर भावों का सुंदरतम रूप दर्शाया है। अत: इसे सुंदरकाण्ड कहना सर्वथा प्रासंगिक एवं उपयुक्त है।

इसके पूर्व वानर दल में विचार होता है की सौ योजन दूरी वाले सागर को कौन लाँघ सकता है । महाबली गरुड़ तथा महावीर हनुमान लंका जाकर वापस भी आ सकते हैं, युवराज अंगद लंका पहुंच सकते हैं किंतु वापस आने में संदेह है, गरुड़पुत्र सम्पाति तो यहीं से अपने प्रखर नेत्रों से सीता जी को देख लेता है। उसे गरुड़ जैसी ही दिव्य दृष्टि प्राप्त है । इस विचार विमर्श से अनभिज्ञ हनुमान् जी को जाम्बवान उनकी आत्म शक्ति याद दिलाते हैं । इसलिए साकेत निवासी श्री सीताराम शरण जी ने सुंदरकांड के पाठ का आरंभ किष्किंधा कांड के अंतिम दोहा क्रमांक 30 की चौपाई- ‘कहहिं रीचपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहहु बलवाना।’ से माना है। इसी प्रसंग से हनुमान का आत्म विवर्धन या विराट चिंतन व कर्तृत्व आरंभ होता है ।

उनका आत्म बल कह उठता है- ‘आवश्यक होने पर मैं सागर का शोषण कर सकता हूं, पृथ्वी को विधीर्ण कर सकता हूं, पर्वतों को चूर-चूर कर सकता हूं, मेरे वेग के सामने यह सागर पल भर भी नहीं टिक सकता।’ हनुमान् के सामने 100 योजन विस्तृत विशाल सागर हिलोरें ले रहा है, किंतु आत्म विभोर हनुमान् के उत्साह की लहरें उससे भी उत्ताल हैं-‘ सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर।।’ जैसे ही महाबली हनुमान विराट् रूप धारण कर समुद्र लांघने के लिए छलांग लगाते हैं महेंद्र पर्वत उनके पैर के बल से पाताल में धंस जाता है। इस समय हनुमान् जी में तेज, बल और पराक्रम सभी का आवेश हुआ। उन्होंने वानर वाहिनी से कहा ‘यदि लंका में सीता जी नहीं मिली तो स्वर्ग लोक चला जाऊंगा यदि वहां भी न मिली तो रावण सहित लंका को उखाड़ कर ले आऊंगा।’ सुंदरकाण्ड के आरंभ में ही इससे श्रेष्ठतर और अधिक सुंदर सीता अन्वेषण का श्रीगणेश क्या हो सकता है? हनुमान् यों उड़ते हैं जैसे श्री राम का अमोघ बाण हो।

सुंदरकाण्ड का चरित्र भी त्रिकूट पर्वत के नील, सुबेल और सुंदर नामक शिखर में से सुंदर शिखर होने से भी इसे यही नाम दिया गया है। यों भी सुंदरकांड में आठ बार सुंदर शब्द का उल्लेख है। सच तो यह है- ‘सुंदर सुंदरो राम: सुंदरे सुंदरी कथा। सुंदरे सुंदरी सीता सुंदरे किन्न सुंदरम् ।।’
इन्हीं विशेषताओं के कारण सारे भारत में ही नहीं वरन संपूर्ण विश्व में यहां तक कि प्रवासी भारतीय परिवारों में भी प्रति मंगलवार और शनिवार को राम कथा रस माधुरी के अमृत-तुल्य सुंदरकाण्ड का पाठ राम भक्तों द्वारा भक्ति भावित हृदय से किया जाता है।
रमेश दीक्षित

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