मध्य रात्रि से सम्पूर्ण भारत की एकमात्र भगवान् नागचंद्रेश्वर की प्रियदर्शना मूर्ति के दर्शन

कल नागपंचमी की पूर्व संध्या पर विशेष
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आ ज ठीक मध्यरात्रि में पूरे एक वर्ष के उपरांत उमा-महेश्वर स्वरूप में भगवान् नागचंद्रेश्वर की नयनाभिराम, अद्भुत एवं प्रियदर्शना मूर्ति का विधिवत् पूजन-अर्चन- नीराजन कर उसे भक्तों के दर्शनार्थ प्रकट कर दिया जाएगा। कहा जाता है कि सम्पूर्ण भारत में अति विशिष्ट मराठाकालीन मूर्ति-शिल्प में उकेरी हुई यह एकमात्र मूर्ति है जिसे वर्तमान महाकाल मंदिर के पुनर्निर्माण काल में प्रतिष्ठित किया गया था।
इस प्रतिमा की प्रमुख विशेषता है इसकी 7 नागों की कुण्डली रूप पीठिका पर उमा-महेश्वर का आसीन होना तथा दोनों पर 7 ही नागफणों की छाया होना। इस मूर्ति की अभिकल्पना भी असाधारण है। भगवान् महेश्वर चतुर्भुज हैं जब कि उमा द्विभुज। महेश्वर के दायें कुछ ऊँचाई पर दक्षिणावर्त सूंड घुमाए गणेशजी नाग के आसन पर विराजित है जिसे महेश्वर सहारा दिये हुए हैं। उमा के बायीं ओर नाग की कुण्डली पर कार्तिकेय विराजित हैं। बाईं ओर नीचे वाहन वृषभ दृष्टव्य है जबकि उमा के बायीं ओर वाहन सिंह बैठा हुआ है। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये सभी आकृतियाँ नागों से आवेष्टित हैं। शिवजी का एक हाथ पार्वती की कमर पर है जिसे पार्वती ने पकड़ा हुआ है । शिवजी के मस्तक के निकट उनका प्रमुख आयुध त्रिशूल देखा जा सकता है। शिव के दायीं ओर नीचे 5 नागफणों की छाया में वाहन वृषभ तथा उमा के बायीं ओर नीचे सिंह भी 5 नागफणों की छाया में आसीन हैं।
विशेष उल्लेख्य है कि यह मनोहारी प्रतिमा हल्के गुलाबी रंग के रेतीले (सेंडस्टोन) की बनी प्रतीत होती है। जब सिंधिया के शासनकाल में वर्तमान महाकाल मन्दिर का उज्जैन के दीवान श्री रामचन्द्रराव शेणवी ने पुनर्निर्माण किया था, यह प्रतिमा उसी समय की बनी हुई प्रतीत होती है। इस प्रतिमा के शिल्प में नागों की आकृतियों का विशेष कला-संयोजन किया गया है।
नागपंचमी के दिन 24 घंटों के लिए ही ऐसी कलात्मक प्रतिमा के दर्शन हो पाते हैं। इसकी एक-एक कलात्मक बारीकियाँ स्पष्ट एवं दर्शनीय हैं। प्रतिमा अति सुंदर है, किन्तु यदि इस पर कोई पेन्ट या अप्रामाणिक दुग्धधारा चढ़ा़ई जाती है तो इस मूर्ति्त का अंशांशी भाव में विरूपित या क्षरित होना सम्भव है।
पटनी बाजार की नागनाथ की गली में चौरासी महादेव मन्दिरों में परिगणित नागचण्डेश्वर मन्दिर की कथा नागचण्ड नामक एक तेजस्वी प्रसन्नचित्त पुरुष से सम्बंधित है नागों से नहीं। इस नागचण्डेश्वर लिंग के दर्शन से मनुष्य को आल्हाद, निवृत्ति, स्वास्थ्य, आरोग्य, सौन्दर्य नि:संदिग्ध रूप से प्राप्त होता है।
रमेश दीक्षित
( लेखक दैनिक अक्षरविश्व के स्तम्भकार हैं)