कब है अक्षय तृतीया है जाने इसका महत्व

10 मई शुक्रवार को अक्षय तृतीया है। हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया के त्योहार का विशेष महत्व होता है। यह पर्व हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। अक्षय तृतीया पर विवाह, गृहप्रवेश और चीजों की खरीदारी करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन सोना-चांदी और इससे बने आभूषण की खरीदारी करते हैं।

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अक्षय तृतीया की तिथि स्वयं सिद्ध अबूझ मुहूर्त मानी गई है। इस दिन कोई भी शुभ मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, घर, भूखंड या वाहन आदि की खरीदारी से सम्बंधित कार्य किए जा सकते हैं। इस दिन माता लक्ष्मी की विशेष पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया का महत्व इसलिए काफी होता है क्योंकि इस तिथि पर कई पौराणिक घटनाएं घटित हुई थी। आइए जानते हैं अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में विस्तार से

अक्षय तृतीया पूजा का मुहूर्त

अक्षय तृतीया की पूजा का मुहूत 10 मई को सुबह 5 बजकर 32 मिनट से दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक हैं. इस मुहूर्त में सोना या चांदी की खरीदारी की जा सकती है.

अक्षय तृतीया को आखा तीज और कृतयुगादि तृतीया भी कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार त्रेता युग का आरंभ भी इसी तिथि को हुआ था। धार्मिक नजरिए से अक्षय तृतीया का विशेष महत्व होता है इसलिए इस युगादि तिथि के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन परशुराम का जन्म हुआ था। इस तिथि पर भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को अक्षय पात्र दिया था। अक्षय तृतीया के दिन ही मां गंगा आक अवतरण हुआ था। मान्यता है कि इस दिन स्नान,दान,जप,होम,स्वाध्याय, तर्पण आदि जो भी कर्म किए जाते हैं,वे सब अक्षय हो जाते हैं। अक्षय तृतीया तिथि पर सोना खरीदने का विशेष महत्व होता है।

अक्षय तृतीया पूजा की विधि

अखय तृतीया के दिन सुबह ठंडे पानी से स्नान के बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को सफेद फूल, फल और मिठाई अर्पित कर श्रीलक्ष्मी मंत्र का जाप करें और मनोकामनाएं पूरी करने के लि ए प्रार्थना करें. पूजा के समय दान करने का संकल्प अवश्य लें.

क्यों शुभ होता है अक्षय तृतीया का दिन

आपको बता दें कि अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान विष्णु के अवतार परशुराम और हयग्रीव का जन्म हुआ था.इस दिन उनकी जयंती भी मनाई जाती है.इसके अलावा इसी तिथि को त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी जिसमे प्रभु श्री राम का जन्म हुआ था.इसलिए शास्त्रों में इस तिथि को इश्वरीय तिथि मानते हैं. यही वजह है कि अक्षय तृतीया के दिन मांगलिक कार्य करना शुभ माना जाता है और खरीदारी के लिए भी यह दिन सबसे ज्यादा शुभ होता है.

अक्षय तृतीया से जुड़ी पौराणिक महत्व की कई कहानियां

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन कई पौराणिक घटनाएं हुईं थीं. इसलिये इसे एक अबूझ मुहूर्त के तौर पर माना जा जाता है. इसे युगादि तिथि भी माना जाता है. कहते हैं कि सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन ही हुई थी. भगवान विष्णु ने नर नारायण का अवतार भी इसी दिन लिया था. भगवान परशुराम का जन्म भी इसी दिन हुआ था. इसी दिन बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं. यही वह पवित्र दिन है जब वृंदावन में बांके बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं.

मान्यता है कि इस दिन ही मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थी. इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को अक्षय पात्र दिया था, जिसमें भी भी भोजन समाप्त नहीं होता था. महाभारत और विष्णु पुराण के अनुसार परशुराम नाम का मूल नाम राम था, लेकिन भगवान शिव ने उन्हें जब अपना परशु नामक अस्त्र प्रदान किया तभी से उनका नाम परशुराम पड़ गया. मान्यता है कि परशुराम का जन्म जिस दिन हुआ था, उस दिन को अक्षय तृतीया कहा गया. परशुराम चिरंजीवी माने गये और उनकी आयु अक्षय है, इसलिये इसे अक्षय तृतीया या चिरंजीवी तिथि कहा गया है.

पितरों के तर्पण से अक्षय फल की प्राप्ति

माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने व भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं. जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है. इस दिन पितरों को किया गया तर्पण व पिंडदान से अक्षय फल की प्राप्ति होती है.

अक्षय तृतीया के दिन मनुष्य जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करें तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, इसलिये इस दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिये अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान मांगना चाहिए.

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