कब है आंवला नवमी 30 या 31 अक्टूबर? जानिए सही तारीख शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

अक्षय नवमी को आंवला नवमी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। इस दिन आंवले के पेड़ की परिक्रमा करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस शुभ अवसर पर दान-पुण्य और आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करना विशेष फलदायी माना जाता है।
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कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी का पर्व मनाया जाता है। इसे आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार देवउठनी एकादशी से दो दिन पहले पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि अक्षय नवमी के दिन ही सतयुग की शुरुआत हुई थी। इस दिन किया गया पुण्य अक्षय फल देने वाला माना जाता है। अक्षय नवमी का संबंध आंवले से भी है। इस दिन आंवले का सेवन करना और आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाकर खाने से अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। अक्षय नवमी के दिन मथुरा और वृंदावन में परिक्रमा लगाई जाती है। इस साल अक्षय नवमी की तारीख को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति है। आइए जानते हैं कि इस बार आंवला नवमी 30 अक्टूबर या 31 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
अक्षय नवमी कब है?
पंचांग के अनुसार कार्तिक के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि की शुरुआत 30 अक्टूबर 2025, गुरुवार को सुबह 10 बजकर 06 मिनट से होकर अगले दिन 31 अक्टूबर 2025, शुक्रवार को सुबह 10 बजकर 03 मिनट पर नवमी तिथि समाप्त होगी। शास्त्रों के अनुसार उदया तिथि को माना जाता है। इसलिए इस बार अक्षय नवमी 31 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी।
शुभ मुहूर्त
आंवले को भगवान विष्णु का प्रिय फल माना गया है। मान्यता है कि इस दिन किए गए दान-पुण्य कार्यों का अक्षय फल प्राप्त होता है। अक्षय नवमी पर पूजा का शुभ मुहूर्त 31 अक्टूबर 2025, शुक्रवार को सुबह 06 बजकर 38 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 03 मिनट तक रहेगा।
ऐसे में आंवले के पेड़ की पूजा करने और भजन के लिए 03 घंटे 25 मिनट का समय मिलेगा।
अक्षय या आंवला नवमी की कथा
काशी में एक ब्राह्मण हुआ करते थे. उनकी कोई संतान नहीं थी, जिसके चलते वो किसी पुरोहित के पास गए. ब्राह्मण ने पुरोहित से पूछा कि उनकी कोई संतान क्यों नहीं है और संतान प्राप्ति के लिए उन्हें क्या करना चाहिए. पुरोहित ने कहा कि आप किसी बालक की हत्या कर दीजिए, तो आपको संतान की प्राप्ति हो जाएगी. जब ब्राह्मण पुरोहित की कही बात घर में अपनी पत्नी को बताता है, तो पत्नी तो इस बात के लिए तैयार हो जाती है, लेकिन ब्राह्मण इस बात के लिए तैयार नहीं होता है.
एक दिन ब्राह्मण की पत्नी को मौका मिला, तो उसने किसी के पुत्र का वध कर दिया और ये बात अपने पति को बताई. ब्राह्मण तुरंत ही एक ऋषि के पास गया और उन्हें पूरी बात बताई. ऋषि बोले जाओ तुम्हे संतान की प्राप्ति हो जाएगी. जैसे ही ब्राह्मण घर पहुंचा, तो देखा कि पत्नी को कोढ़ हो गया था, क्योंकि पत्नी ने किसी ब्राह्मण के बालक की हत्या कर दी थी. ब्राह्मण पत्नी को लेकर ऋषि के पास पहुंचा, तब ऋषि ने कहा कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन वे आंवला नवमी का व्रत करें, आंवले के पेड़ के नीचे जाकर पूरी श्रद्धा के साथ पूजन करें और भोजन करें, ऐसा करने से पत्नी का कोढ़ शांत होगा और उसे संतान की प्राप्ति होगी.
अक्षय या आंवला नवमी की दूसरी कथा
एक आंवला राजा था | जों रोज एक सोने का आंवला दान करता था और बाद में खाना खाता था | एक दिन उसके बेटे बहुओं ने सोचा की इस तरह तो राज्य का खजाना खाली हो जायेगा | इसलिये इनके दान करने की आदत को बंद करना चाहिये | फिर राजा का पुत्र आया और राजा से बोला की आप सारा धन लुटा देगें , इसलिये आप आंवले का दान करना बंद कर दो | तब राजा रानी व्याकुल मन से उजाड़ में जाके बैठ गये |
राजा ने आंवले का दान नही किया इसलिये खाना भी नहीं खाया | तब भगवान ने सोचा इसका मान तो रखना पड़ेगा | तब भगवान ने सपने में कहा कि तुम उठो ,तुम्हारे पहले जैसी रसोई हो गई हैं और आंवले का वृक्ष लगा हैं , तुम दान करो और जीम लो |
तब राजा रानी ने उठकर देखा तो पहले जैसै राज पाठ हो गये और सोने के आंवले वृक्ष पर लगे हुए हैं | तब राजा रानी पहले की तरह आंवले का दान करने लगे | वहा पर बेटे बहु के घर अन्न्दताता का बैर पड़ गया | आसपास के लोगो ने कहा कि कि जंगल में एक आंवलिया राजा हैं सो तुम वहाँ चलो तो तुम्हारा दुःख दुर हो जायेगा | वें वहाँ पर चले गये | वहा पर रानी अपने बेटे और बहु को देखकर पहचान गई और अपने पति से बोली कि इन दोनों से काम तो कम करायेगें और मजदूरी ज्यादा देगें | एक दिन रानी ने अपनी बहु को बुलाकर कहा की मुझे सिर सहित नहला दो | बहु सिर धोने लगी तो बहु के आखं से आंसू निकल कर रानी की पीठ पड़ गया | तब रानी बोली तुम क्यों रो रही हो मुझे कारण बताओं | तो बहु बोली मेरी भी सासु की पीठ पर ऐसा ही मस था | वह एक मन का आंवले का दान करते थे , तो हमने उन्हे करने नही दिया | हमसे गलती हो गई तब सासु बोली हम ही तुम्हारे सास ससुर हैं |तुमने तो हमें निकाल दिया पर भगवान ने हमारा सत रख लिया | हे भगवान ! जैसा सत राजा रानी का सत रखा वैसा ही सबका रखना |
लक्ष्मी जी ने की थी पूजा
आंवला नवमी के बारे में कहा जाता है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर देवी लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष के नीचे शिवजी और विष्णुजी की पूजा की थी, तभी से इस तिथि पर आंवले के पूजन की परंपरा शुरू हुई है.
अक्षय नवमी के अवसर पर आंवले के पेड़ की पूजा करने का विधान है. कहते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु और शिव जी यहां आकर निवास करते हैं. आज के दिन स्नान, पूजन, तर्पण और अन्नदान करने का बहुत महत्व होता है.
वहीं चरक संहिता में बताया गया है कि अक्षय नवमी को महर्षि च्यवन ने आंवला खाया था, जिसके बाद उन्हें फिर से यौवन प्राप्त हो गया था.
पूजा विधि
सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
घर या मंदिर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें।
पीले पुष्प, तुलसी दल, दीपक, धूप और नैवेद्य अर्पित करें।
नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का पाठ करें।
इसके बाद आंवला वृक्ष की पूजा करें।
कच्चे सूत से वृक्ष की परिक्रमा करें और जल अर्पित करें।
इसके बाद हल्दी, रोली, फूल और दीपक से पूजन करें।
गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन तथा दान दें।
आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करें।









