कब है नागपंचमी? जानें पूजा के मंत्र और मुहूर्त

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, नाग पंचमी का पर्व सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह तिथि 28 जुलाई, सोमवार को रात्रि 11:24 बजे से प्रारंभ होगी, जो 29 जुलाई, मंगलवार को दोपहर 12:46 बजे तक रहेगी। चूँकि पंचमी तिथि का सूर्योदय 29 जुलाई को होगा, इसलिए नाग पंचमी का पर्व इसी दिन मनाया जाएगा।
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नाग पंचमी 2025 पर कौन से शुभ योग बनेंगे?
29 जुलाई को नाग पंचमी के अवसर पर शिव, सिद्ध, प्रजापति और सौम्य नाम के शुभ योग बनेंगे। इतने सारे शुभ योगों के कारण नाग पंचमी पर्व का महत्व और भी बढ़ जाएगा और इस दिन किए गए उपाय और पूजा-पाठ का फल भी शीघ्र प्राप्त होगा।
नाग पंचमी 2025 शुभ मुहूर्त
मंगलवार, 29 जुलाई को नाग पंचमी पूजा का सर्वोत्तम समय सुबह 05:41 बजे से 08:23 बजे तक रहेगा, अर्थात भक्तों को पूजा के लिए पूरे 02 घंटे 43 मिनट का समय मिलेगा। इसके अलावा, आप नीचे दिए गए मुहूर्त में भी पूजा कर सकते हैं-
– सुबह 09:16 बजे से 10:55 बजे तक
– सुबह 10:55 बजे से दोपहर 12:33 बजे तक
– दोपहर 12:33 बजे से दोपहर 02:11 बजे तक
– दोपहर 03:49 बजे से शाम 05:28 बजे तक
नाग पंचमी पर क्यों होती है नागों की पूजा?
भविष्य पुराण के ब्रह्मा पर्व में नाग पंचमी की कथा दी गई है. इस पुराण के अनुसार सुमंतु मुनि ने शतानीक राजा को नाग पंचमी की कथा बताई थी. श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन नाग लोक में बड़ा उत्सव होता है. पंचमी तिथि को जो व्यक्ति नागों को गाय के दूध से स्नान कराता है, उसके कुल को सभी नाग अभयदान देते हैं. उसके परिवार को सर्प का भय नहीं रहता और काल सर्प दोष से मुक्ति मिलती है. महाभारत में जन्मेजय के नाग यज्ञ की कहानी है, जिसके अनुसार जन्मेजय के नाग यज्ञ के दौरान बड़े-बड़े विकराल नाग अग्नि में जलने लगे. उस समय आस्तिक नामक ब्राह्मण ने सर्प यज्ञ रोककर नागों की रक्षा की थी. यह पंचमी की तिथि थी.
नाग पंचमी पर नागों की पूजा का महत्व
मान्यता के अनुसार नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने वाले व्यक्ति को सर्प दंश का भय नहीं होता है। इसके अलावा इस दिन सर्पों को दूध से स्नान कराने और पूजन कर दूध पिलाने से अक्षय-पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन घर के प्रवेश द्वार पर नाग चित्र बनाने से घर नाग-कृपा से सुरक्षित रहता है।
इसके अलावा मान्यता है कि यदि प्रतिदिन प्रातःकाल नियमित रूप से नाग मंत्र का जप करते हैं तो नाग देवता समस्त पापों से सुरक्षित रखते हैं और आपको जीवन में विजयी बनाएंगे। कई लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं।
नाग पंचमी व्रत और पूजन विधि
1.नाग पंचमी व्रत के देवता आठ नाग माने गए हैं। इनमें अनंत, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख शामिल हैं। इन अष्टनागों की ही नाग पंचमी पर पूजा की जाती है।
2. व्रत के विधान के अनुसार चतुर्थी के दिन एक बार भोजन किया जाता है और अगले दिन पंचमी पर दिनभर उपवास करके शाम को भोजन किया जाता है।
3. पूजा करने के लिए नाग चित्र या मिट्टी की सर्प मूर्ति को लकड़ी की चौकी के पर स्थान दिया जाता है।
4. फिर हल्दी, रोली (लाल सिंदूर), चावल और फूल चढ़कर नाग देवता की पूजा की जाती है।
5. इसके बाद कच्चा दूध, घी, चीनी मिलाकर लकड़ी के पट्टे पर बैठे सर्प देवता को अर्पित करते हैं।
6. पूजन करने के बाद सर्प देवता की आरती उतारी जाती है।
7. सुविधा की दृष्टि से किसी सपेरे को कुछ दक्षिणा देकर यह दूध सर्प को पिला सकते हैं।
8. अंत में नाग पंचमी की कथा अवश्य सुननी चाहिए।
नाग पंचमी पूजा मंत्र
सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिताः॥
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः।
ये च वापीतडगेषु तेषु सर्वेषु वै नमः॥
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शङ्ख पालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायङ्काले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः।
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्॥
नाग पंचमी से जुड़ीं मान्यताएँ
पुराणों के अनुसार,सर्प के दो प्रकार बताए गए हैं: दिव्य और भौम। वासुकि और तक्षक को दिव्य सर्प माना गया हैं जिन्हे पृथ्वी का बोझ उठाने वाला तथा अग्नि के समान तेजस्वी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि ये अगर कुपित हो जाए तो अपनी फुफकार मात्र से सम्पूर्ण सृष्टि को हिला सकते हैं।
पुराणों के अनुसार, सृष्टि रचियता ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि कश्यप की चार पत्नियाँ थी। मान्यता है कि उनकी पहली पत्नी से देवता, दूसरी पत्नी से गरुड़ और चौथी पत्नी के गर्भ से दैत्य उत्पन्न हुए, लेकिन उनकी तीसरी पत्नी कद्रू का सम्बन्ध नाग वंश से था, इसलिए उनके गर्भ से नाग उत्पन्न हुए। सभी नागों में आठ नाग को श्रेष्ठ माना गया है और इन अष्ट नागों में से दो नाग ब्राह्मण, दो क्षत्रिय, दो वैश्य और दो शूद्र हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अर्जुन के पौत्र और परीक्षित के पुत्र थे जन्मजेय। उन्होंने सर्पों से प्रतिशोध व नाग जाति का विनाश करने के लिए नाग यज्ञ सम्पन्न किया था क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक सर्प के काटने से हुई थी। इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने नाग वंश की रक्षा हेतु रोका था। इस यज्ञ को जिस तिथि पर रोका गया था उस दिन श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि थी। ऐसा करने से तक्षक नाग और समस्त नाग वंश विनाश से बच गया था। उसी दिन से ही इस तिथि को नाग पंचमी के रूप में मनाने की प्रथा प्रचलित हुई।
नाग पंचमी की मान्यताएं क्या हैं
मान्यता है कि नागपंचमी पर सर्पों को अर्पित किया जाने वाला कोई भी पूजन नाग देवताओं के समक्ष पहुंच जाता है। इस दिन अनंत, वासुकी, शेष, पद्म, कंबल, कर्कोटक, अश्वतर, धृतराष्ट्र, शंखपाल, कालिया, तक्षक, पिंगल नागों की पूजा की जाती है।